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Bodh Gaya | बोधगया | महाबोधि | बौद्ध धर्म का केंद्र

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Bodh Gaya (बोधगया) | Tourist Places in Bodh Gaya

बौद्ध धर्म का केंद्र बोधगया (महाबोधी) बिहार राज्य के गया ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध नगर है, जिसका बहुत बड़ा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यहाँ महात्मा बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की थी।

बोधगया बिहार की राजधानी पटना से लगभग 125 किलोमीटर दूर  दक्षिणपूर्व  में स्थित गया जिले का एक छोटा शहर है। बोधगया में बोधि पेड़़ के नीचे तपस्या कर रहे भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष २००२ में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।

बोध गया (महाबोधि ) का इतिहास | History of Bodh Gaya

बोधगया में बोधि पेड़़ के नीचे तपस्या कर रहे भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष २००२ में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।

लगभग 528 ई॰ पू. के वैशाख (अप्रैल-मई) महीने में कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम ने सत्य की खोज में घर त्याग दिया। गौतम ज्ञान की खोज में इसी पीपल के पेड़ (महाबोधि वृक्ष) के नीचे ध्यान साधना करने लगे। साधना के कुछ दिनों बाद ही उनके अज्ञान का बादल छट गया और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह राजकुमार सिद्धार्थ या तपस्वी गौतम नहीं थे बल्कि बुद्ध थे। बुद्ध जिसे सारी दुनिया को ज्ञान प्रदान करना था। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे अगले सात सप्ताह तक इसके  नजदीक अलग अलग जगह पर रहे और चिंतन मनन किया। इसके बाद बुद्ध वाराणसी के निकट सारनाथ गए जहां उन्होंने अपने ज्ञान प्राप्ति की घोषणा की। बुद्ध कुछ महीने बाद फिर यहां (अब के बोधगया) लौट आए। यहां उनके पांच मित्र अपने अनुयायियों के साथ उनसे मिलने आए और उनसे दीक्षित होने की प्रार्थना की। इन लोगों को दीक्षित करने के बाद बुद्ध राजगीर चले गए। इसके बाद बुद्ध के यहां वापस लौटने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। इसके बाद यह जगह महाबोधि नामों से जाना जाने लगा। बोधगया शब्द का उल्लेख 18 वीं शताब्दी से मिलने लगता है।

गौतम बुद्ध की मृत्यू

गौतम बुद्ध की मृत्यु कैसे हुई,  । इसकी सटीक जानकारी या वर्णन नहीं है।  उनकी मृत्यु के बारे में बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं।

गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ई. में पूर्व कुशीनगर में हुई थी। उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी। यहां सम्राट अशोक ने स्तूप का निर्माण करवाया था, यह बौद्ध लोगों का एक तीर्थ स्थल है।

कथाओं के अनुसार भगवान बुद्ध की मृत्यु एक व्यक्ति द्वारा परोसे गए विषाक्त भोजन की वजह से हुई थी, भगवान बुद्ध ने एक व्यक्ति का भोजन करने का अनुग्रह स्वीकार कर लिया, उस व्यक्ति द्वारा बुद्ध को जो भोजन परोसा गया वो विषाक्त हो चुका था,किन्तु भगवान बुद्ध उस व्यक्ति के प्रेम का निरादर नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने वह भोजन ग्रहण कर लिया, जिससे उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता गया और उनकी मृत्यु हुई।

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Lord Buddha Mahabodhi Temple

विश्वास किया जाता है कि महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्त्ति संबंध स्वयं बुद्ध से है। कहा जाता है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तो इसमें बुद्ध की एक मूर्त्ति स्थापित करने का भी निर्णय लिया गया था। लेकिन लंबे समय तक किसी ऐसे शिल्पकार को खोजा नहीं जा सका जो बुद्ध की आकर्षक मूर्त्ति बना सके। सहसा एक दिन एक व्यक्ति आया और उसे मूर्त्ति बनाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्त्तें भी रखीं। उसकी शर्त्त थी कि उसे पत्थर का एक स्तम्भ तथा एक लैम्प दिया जाए। उसकी एक और शर्त्त यह भी थी इसके लिए उसे : महीने का समय दिया जाए तथा समय से पहले कोई मंदिर का दरवाजा खोले। सभी शर्त्तें मान ली गई लेकिन व्यग्र गांववासियों ने तय समय से चार दिन पहले ही मंदिर के दरवाजे को खोल दिया। मंदिर के अंदर एक बहुत ही सुंदर मूर्त्ति थी जिसका हर अंग आकर्षक था सिवाय छाती के। मूर्त्ति का छाती वाला भाग अभी पूर्ण रूप से तराशा नहीं गया था। कुछ समय बाद एक बौद्ध भिक्षु मंदिर के अंदर रहने लगा। एक बार बुद्ध उसके सपने में आए और बोले कि उन्होंने ही मूर्त्ति का निर्माण किया था। बुद्ध की यह मूर्त्ति बौद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठित मूर्त्ति है। नालन्दा और विक्रमशिला के मंदिरों में भी इसी मूर्त्ति की प्रतिकृति को स्थापित किया गया है।

 
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Mahabodhi Temple | महाबोधि मन्दिर


महाबोधि मन्दिर | बोधगया का प्रमुख आक्रषण केंद्र          

महाबोधि विहार या महाबोधि मन्दिर, बोध गया स्थित प्रसिद्ध बौद्ध विहार है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया है। यह विहार उसी स्थान पर खड़ा है जहाँ गौतम बुद्ध ने ईसा पूर्व 6वी शताब्धिं में ज्ञान प्राप्त किया था।

यह विहार मुख्य विहार या महाबोधि विहार के नाम से भी जाना जाता है। इस विहार की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तुप के समान है। इस विहार में गौतम बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचिलत है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान बुद्धत्व (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। विहार के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस विहार परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहां बौद्ध भिक्खु ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में विहार प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते है।

इस विहार परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह व्यतीत किया था। जातक कथाओं में उल्लेखित बोधि वृक्ष भी यहां है। यह एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्य विहार के पीछे स्थित है। बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में जो बोधि वृक्ष वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढी है। विहार समूह में सुबह के समय घण्टों की आवाज मन को एक अजीब सी शांति प्रदान करती है।

 

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Diamond Throne राजसिहांसन

बिहार में इसे मंदिरों के शहर के नाम से जाना जाता है। इस गांव के लोगों की किस्मत उस दिन बदल गई जिस दिन एक राजकुमार ने सत्य की खोज के लिए अपने राजसिहासन को ठुकरा दिया। बुद्ध के ज्ञान की यह भूमि आज बौद्धों के सबसे बड़े तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। आज विश्व के हर धर्म के लोग यहां घूमने आते हैं। पक्षियों की चहचहाट के बीच बुद्धम्-शरनम्-गच्छामि की हल्की ध्वनि अनोखी शांति प्रदान करती है। यहां का सबसे प्रसिद्ध मंदिर महाबोधि मंदिर है। विभिन्न धर्म तथा सम्प्रदाय के लोग इस मंदिर में आध्यात्मिक शांति की तलाश में आते हैं। बुद्ध के ज्ञान प्रप्ति के २५० साल बाद राजा अशोक बोधगया आए थे। माना जाता है कि उन्होंने महाबोधि मन्दिर का निर्माण कराया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पहली शताब्दी में इस मन्दिर का निर्माण कराया गया या उस्की मरम्मत कराई गई।

 बोधि वृक्ष |  Bodhi Tree

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बोधि वृक्ष | Mahabodhi Tree

बोधि वृक्ष है, जो बौद्ध धर्म का एक मुख्य प्रतीक है और बौद्ध धर्म में  धार्मिक रूप से इसका महत्वपूर्ण स्थान है

महाबोधि विहार परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह व्यतीत किये थे। जातक कथाओं में उल्लेखित बोधि वृक्ष  यही है यह एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्य विहार के पीछे स्थित है। बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में जो बोधि वृक्ष वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढी है। विहार समूह में सुबह के समय घण्टों की आवाज मन को एक अजीब सी शांति प्रदान करती है।

महाबोधि मंदिर के बाईं ओर बोधि वृक्ष है, जो बौद्ध धर्म का एक मुख्य प्रतीक है। यह उस स्थान को चिन्हित करता है जहां कभी मूल बोधि वृक्ष हुआ करता था, जिसके नीचे भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया था। एक महीने से अधिक समय तक, सिद्धार्थ (जैसा कि बुद्ध को पहले कहा जाता था) ने बोधगया में एक पवित्र अंजीर के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया था। हर साल 8 दिसंबर को, बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध के ज्ञानोदय का उत्सव-बोधि दिवस -दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। वर्तमान बोधि वृक्ष संभवतया मूल वृक्ष का पांचवा पेड़ है। सुंदर नक्काशीदार प्रार्थना करने का स्तूप, चैत्य (बौद्ध प्रार्थना हॉल) और भगवान बुद्ध की कई प्रतिमाओं से घिरा हुआ। यहां शांति से पढ़ते हुए या ध्यान में बैठे बौद्ध भिक्षुओं को देखा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अशोक की बेटी, संघमित्त (या संघमित्रा) ने बोधगया से मूल बोधि वृक्ष की एक शाखा ली और इसे श्रीलंका के अनुराधापुर शहर में लगाया। वह बोधि वृक्ष अभी भी जीवित है और माना जाता है कि यह दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष है। माना जाता है कि बोधगया में वर्तमान बोधि वृक्ष श्रीलंका में एक से लाए गए पौधे से उगाया गया है।

महाबोधि परिसर में अन्य महत्वपूर्ण स्थान

मुख्य विहार के पीछे बुद्ध की लाल बलुए पत्थर की 7 फीट ऊंची एक मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति विजरासन मुद्रा में है। इस मूर्त्ति के चारों ओर विभिन्न रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्त्ति को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने हीरों से बना राजसिहांसन लगवाया था और इसे पृथ्वी का नाभि केंद्र कहा था। इस मूर्त्ति की आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पदचिन्ह बने हुए हैं। बुद्ध के इन पदचिन्हों को धर्मचक्र प्रर्वतन का प्रतीक माना जाता है।

बुद्ध ने ज्ञान प्रप्ति के बाद दूसरा सप्ताह इसी बोधि वृक्ष के आगे खड़ा अवस्था में बिताया था। यहां पर बुद्ध की इस अवस्था में एक मूर्त्ति बनी हुई है। इस मूर्त्ति को अनिमेश लोचन कहा जाता है। मुख्य विहार के उत्तर पूर्व में अनिमेश लोचन चैत्य बना हुआ है।

मुख्य विहार का उत्तरी भाग चंकामाना नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्रप्ति के बाद तीसरा सप्ताह व्यतीत किया था। अब यहां पर काले पत्थर का कमल का फूल बना हुआ है जो बुद्ध का प्रतीक माना जाता है।

महाबोधि विहार के उत्तर पश्चिम भाग में एक छतविहीन भग्नावशेष है जो रत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्रप्ति के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। दन्तकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्यान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्हीं रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा यहां लगे अपने पताके में किया है।

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मूचालिंडा झील (Muchalinda Lake Bodh Gaya) 


बुद्ध ने मुख्य विहार के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपाला-निग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्रप्ति  के बाद पांचवा सप्ताह व्यतीत किया था। बुद्ध ने छठा सप्ताह महाबोधि विहार के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा झील (Muchalinda Lake Bodh Gaya)   के नजदीक व्यतीत किया था। यह झील  चारों तरफ से वृक्षों से घिरा हुआ है। इस झील  के मध्य में बुद्ध की मूर्त्ति स्थापित है। इस मूर्त्ति में एक विशाल सांप बुद्ध की रक्षा कर रहा है। इस मूर्त्ति के संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार बुद्ध प्रार्थना में इतने तल्लीन थे कि उन्हें आंधी आने का ध्यान नहीं रहा। बुद्ध जब मूसलाधार बारिश में फंस गए तो सांपों का राजा मूचालिंडा अपने निवास से बाहर आया और बुद्ध की रक्षा की।

इस विहार परिसर के दक्षिण-पूर्व में राजयातना वृक्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना सांतवा सप्ताह इसी वृक्ष के नीचे व्यतीत किया था। यहीं बुद्ध दो बर्मी (बर्मा का निवासी) व्यापारियों से मिले थे। इन व्यापारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की। इन प्रार्थना के रूप में बुद्धमं शरणम् गच्छामि (मैं बुद्ध को शरण जाता हू) का उच्चारण किया। इसी के बाद से यह प्रार्थना प्रसिद्ध हो गई।

बोधगया के अन्य प्रमुख आकर्षण 

बोध-गया घूमने के लिए दो दिन का समय पर्याप्त है। अगर आप एक रात वहां रूकते हैं तो एक दिन का समय भी प्रर्याप्त है।  बोधगया घूमने का सबसे बढिया समय बुद्ध जयंती (अप्रैल-मई) है जिसे राजकुमार सिद्धार्थ के जंमदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस समय यहां होटलों में कमरा मिलना काफी मुश्किल होता है। इस दौरान महाबोधि मंदिर को हजारों कैंडिलों की सहायता से सजाया जाता है। यह दृश्य देखना अपने आप में अनोखा अनुभव होता है। इस दृश्य की यादें आपके जेहन में हमेशा बसी रहती है। बोधगया में ही मगध विश्वविद्यालय का कैंपस है। इसके नजदीक एक सैनिक छावनी है तथा करीब सात किलोमीटर दूर अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट है जहाँ से थाईलैंड, श्रीलंका बर्मा इत्यादि के लिए नियमित साप्ताहिक ग्रेट

बुद्धा स्टेच्यू (रत्नाघरा) | Giant Buddha Bodh Gaya

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Giant Buddha

ग्रेट बुद्धा स्टेच्यू एक विस्मयकारी दृश्य है, जो लगभग 25 मीटर की ऊंचाई (80 फ़ीट ) पर खड़ा है। इसे ८० फूटा मूर्ति भी कहते है।  इसे भारत की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक माना जाता है और इसमें भगवान बुद्ध को ध्यान मुद्रा में कमल पर बैठे हुए दिखाया गया है। 18 नवंबर, 1989 को इसका अनावरण और अभिषेक किया गया था, और इस समारोह में 14 वें दलाई लामा ने भाग लिया और इस स्थल को आशीर्वाद दिया। प्रतिमा बोधगया का प्रतीक है और दुनिया भर से तीर्थयात्री इसे देखने के लिए आते हैं। कहा जाता है कि इस प्रतिमा को बनने में सात साल लगे थे और इसके निर्माण में लगभग 120,000 राजमिस्त्री लगे थे। 1982 में महाबोधि मंदिर के पास प्रतिमा की आधारशिला रखी गई थी। लाल ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर के खंडों से बनी यह मूर्ति ऐसी है कि इससे नजरें ही नहीं हटती हैं।

तिब्बती बौद्ध मठ | Tibetan Monestry Bodh Gaya

तिब्बती मठ बोधगया पर्यटन के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक है। यह बोधगया में सबसे पुराना और सबसे बड़ा मठ है और इसमें बड़ी संख्या में प्राचीन बौद्ध धर्मग्रंथ और दस्तावेज मौजूद हैं। मंदिर को सजाने वाली मैत्रेय बुद्ध की एक मूर्ति है। बोधगया में तिब्बती मठ का एक अन्य आकर्षण 10 मीटर ऊंची धातु का ड्रम है जिसे सुनहरे और लाल रंग में रंगा गया है। इस वस्तु को धर्मचक्र या कानून के पहिये के रूप में जाना जाता है। मठ के भीतर एक विशाल पुस्तकालय है जिसमें बौद्ध धर्म के विभिन्न पहलुओं पर किताबें हैं।उड़ानें उपलब्ध हैं

इंडोसन निप्पॉन जापानी मंदिर | Indosan Nippon Japanese Temple Bodh Gaya

अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समुदायों की मदद से वर्ष 1972 में निर्मित, इंडोसन निप्पॉन जापानी मंदिर को लकड़ी से उकेरा गया है और यह जापानी तीर्थस्थल की तरह दिखता है। यह जापानी वास्तुकला और बौद्ध संस्कृति दोनों का बेहतरीन उदाहरण है। शहर के केंद्र से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित, यह बोधगया के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। मंदिर का निर्माण बौद्ध धर्म और भगवान बुद्ध की मान्यताओं के संरक्षण और प्रचार के लिए किया गया था, और इसकी दीवारों पर बुद्ध की शिक्षाओं के शिलालेख हैं। मंदिर की गैलरी में जापानी चित्र हैं जो बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाते हैं। 

थाई मंदिर/ मठ बोधगया (WAT THAI ROYAL THAI MONASTERY Bodh Gaya)

थाई मंदिर/ मठ बोधगया (WAT THAI ROYAL THAI MONASTERY Bodh Gaya) image download

थाई मंदिरमठ बोधगया (WAT THAI ROYAL THAI MONASTERY Bodh Gaya)

यह बोधगया का प्रमुख मंदिरो में से है। यह  मंदिर बहुत ही आकर्षक है। थाई मंदिर बोधगया सोने की उत्तम टाइलों से ढकी अपनी घुमावदार छत के लिए जाना जाता है, थाई मठ में बुद्ध की एक कांस्य प्रतिमा और एक अन्य हाल ही में बगीचे में 25 मीटर ऊंची प्रतिमा है।

रॉयल भूटानी मठ बोधगया | Royal Bhutan Monastery

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रॉयल भूटानी मठ बोधगया | Royal Bhutan Monastery

रॉयल
भूटान मठ का नाम इसलिए रखा गया है, क्योंकि यह भगवान बुद्ध के समर्पण के रूप में भूटान के राजा द्वारा बनाया गया था। मठ की आंतरिक दीवारों पर मिट्टी की नक्काशी देखी जाती है जो बौद्ध संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है।

चीनी मंदिर, बोधगया | Chinese Temple Bodh Gaya

चीनी मंदिर का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किया गया था। यह गर्भगृह के भीतर भगवान बुद्ध की मूर्ति के साथ सुंदर चीनी कलाकृति प्रदर्शित करता है।

 

बोधगया कैसे पहुंचें | How to Reach Bodhgaya

फ्लाइट से बोधगया कैसे पहुंचें | How to Reach Bodhgaya by Flight

बोधगया का निकटतम हवाई अड्डा (Airport) गया है जो बोधगया शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर है। हालांकि यहां कम ही फ्लाइटें आती हैं लेकिन यह कोलकाता से हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह से कनेक्ट है। थाई एयरवेज की गया के लिए नियमित उड़ानें हैं जबकि बैंकॉक से ड्रुक एयर हफ्ते में एक दिन गया के लिए उड़ान भरती है।

इसके अलावा पटना एयरपोर्ट (Patna Airport) कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, रांची, लखनऊ सहित भारत के अन्य शहरों से इंडियन एयरलाइंस और अन्य घरेलू वाहकों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पटना से बोधगया 125 किमी दूर है। एयरपोर्ट के बाहर से आप टैक्सी बुक करके बोधगया शहर पहुंच सकते हैं।

ट्रेन से बोधगया कैसे पहुंचें | How to Reach Bodhgaya by Train

बोधगया का निकटतम रेलवे स्टेशन (Nearest Junction) गया जंक्शन है जो यहां से 13 किमी दूर है। इस स्टेशन से कई राज्यों से ट्रेनें गुजरती हैं। आप गया रेलवे स्टेशन के बाहर से टैक्सी लेकर बोधगया पहुंच सकते हैं। गया स्टेशन पर सियालदह (Sealdah) नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस, हावड़ा नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस और कोलकाता मेल जैसी ट्रेनें पहुंचती हैं। पटना जंक्शन से बोधगया 110 किमी दूर है। पटना पहुंचने के लिए बंगलौर, दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई और पुणे से कई ट्रेनें हैं।

बस से बोधगया कैसे पहुंचें | How to Reach Bodhgaya by Bus

गया से एक मुख्य सड़क बोधगया शहर को जोड़ती (Connect) है। पटना से बोधगया के लिए  बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन दो बार चलती हैं।इसके अलावा डीलक्स बसें भी चलती हैं। पटना के अलावा, नालंदा, राजगीर, वाराणसी और काठमांडू से भी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। अब लक्जरी वातानुकूलित वोल्वो बसें भी शुरू हो गई हैं  जो आसपास के शहरों से बोधगया को जाती हैं।

बोधगया में कहां रुकें | Where to Stay in Bodh Gaya

बोधगया में ठहरने के लिए अच्छे होटल और गेस्ट हाउस की कमी नहीं है। अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थल होने के कारण यहाँ हर तरह के होटल मौजूद है। लेकिन पीक सीजन में पहले से कमरा बुक कराना ज्यादा फायदेमंद होता है। यहां एसी और नॉन एसी (Non AC) दोनों तरह के होटल और गेस्टहाउस हैं। महाबोधि मंदिर से पार्क के सामने बहुत से होटल हैं जहां पर्यटकों के लिए ठहरने और भोजन की बेहतर सुविधा उपलब्ध है।

 

नजदीकी पर्यटन स्थल

राजगीर | Rajgir

बोधगया आने वालों को राजगीर भी जरुर घूमना चाहिए।

बोधगया से 70 किलीमीटर दूर राजगीर भी एक अंतराराष्ट्रीय पर्यटन स्थल  है. यह भी बोध धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।

नीचे दिए गए लिंक पर राजगीर के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

https://www.politicalfunda.com/2021/03/beautiful-places-in%20india.html

https://youtu.be/TyiQ2RzSemQ 

https://youtu.be/yFkNHrAYTm8 

https://youtu.be/paAOKxBFoqw

 https://youtu.be/28DHL1F_Jyg


ऐतिहासिक रूप से, कई साम्राज्यों की राजधानी के रूप में जैन धर्म में राजगीर का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मुख्य पर्यटन आकर्षणों में अजातशत्रु के काल की प्राचीन शहर की दीवारें, बिंबिसार की जेल, जरासंध का अखाड़ा, कृष्ण का रथ का पहिया चिह्न, राजगीर के गर्म जल के झरने / ब्रह्मकुंड, गृद्धकूट पर्वत ('गिद्धों का पहाड़'), सोन भंडार गुफाएँ/  स्वर्ण भंडार, रोपवे और विश्व  शांति स्तूप।

The main tourist attractions include the ancient city walls from Ajatshatru's period, the Bimbisar's JailJarasandh's Akhara, The Krishna Charriot wheel mark Rajgir Hot Spring / Brahmakund, Gridhra-kuta, ('Hill of the Vultures'), Son Bhandar Caves & Vishva Shanti Stupa & Ropeway.

यहां का विश्व शांति स्तूप काफी आकर्षक है। यह स्तूप ग्रीधरकूट पहाड़ी पर बना हुआ है।  इस पर जाने के लिए रोपवे बना हुआ। इसका शुल्क 80 रु. है। इसे आप सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक देख सकते हैं। इसके बाद इसे दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक देखा जा सकता है।

शांति स्तूप के निकट ही वेणु वन है। कहा जाता है कि बुद्ध एक बार यहां आए थे।

राजगीर में ही प्रसद्धि सप्तपर्णी गुफा है जहां बुद्ध के निर्वाण के बाद पहला बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया था। यह गुफा राजगीर बस पड़ाव से दक्षिण में गर्म जल के कुंड से 1000 सीढियों की चढाई पर है। इन सबके अलावा राजगीर में जरासंध का अखाड़ा, स्वर्ण भंडार (दोनों स्थल महाभारत काल से संबंधित है) तथा विरायतन भी घूमने लायक जगह है।  

नालन्दा | Nalanda

यह स्थान राजगीर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन काल में यहां विश्व प्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित था। अब इस विश्वविद्यालय के अवशेष ही दिखाई देते हैं। लेकिन हाल में ही बिहार सरकार द्वारा यहां अंतरराष्ट्रीय विश्व विद्यालय स्थापित करने की घोषणा की गई है जिसका काम प्रगति पर है। यहां एक संग्रहालय भी है। इसी संग्रहालय में यहां से खुदाई में प्राप्त वस्तुओं को रखा गया है।

https://youtu.be/0CCXVkf-EfE

पावापुरी | Pawapuri

नालन्दा से 5 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल पावापुरी स्थित है। यह स्थल भगवान महावीर से संबंधित है। यहां महावीर एक भव्य मंदिर है। नालन्दा-राजगीर आने पर इसे जरुर घूमना चाहिए।  


सुचना

फोटोग्राफी के लिए संपर्क:  राहुल डिजिटल स्टूडियो बोधगया

महाबोधि मंदिर के अंदर मोबाइल कैमरा की अनुमति नहीं है

मोबाइल नंबर +919155835688


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