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वैशाली (Vaishali) | विश्व का सबसे पहला गणतंत्र

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वैशाली |गणतंत्र की जननी वैशाली

वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर 12 अक्टुबर 1972 को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। वैशाली मुख्य भाषा वज्जिक है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" का प्रारम्भ हुआ था ।भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली, अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध था, और इस शहर को समृद्ध बनाने में एक बड़ी मदद की। आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है। वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं।

 वैशाली का इतिहास

ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार माना जाता है कि वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। वैशाली दुनिया का पहला गणराज्य है। प्राचीन काल के राजा विशाल के नाम पर इस शहर का नाम खा गया था जो धीरे-धीरे वैशाली में परिवर्तित हो गया। राजा विशाल ने यहां एक महान किले का निर्माण करवाया था, जो अब खंडहर हो चुका है। वैशाली जिला भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए एक पवित्र नगरी है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ। भगवान बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। वैशाली एक महान बौद्ध तीर्थस्थल है और भगवान महावीर की जन्मभूमि भी है। बुद्ध ने वैशाली में अपना अंतिम उपदेश भी दिया और यहां अपने निर्वाण की घोषणा की। 

महान लिच्छवी वंश ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वैशाली पर शासन किया था। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकशाही को अपनाया जा रहा है वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। ईसा पूर्व छठी सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत की गयी थी। लगभग छठी शताब्दि ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता था। मौर्य और गुप् राजवंश में जब पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) राजधानी के रूप में विकसित हुआ, तब वैशाली इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार और उद्योग का प्रमुख केंद्र था।

वैशाली महान भारतीय नर्तक अम्बपाली (आम्रपाली) की भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है। आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी। इनका एक नाम 'अम्बपाली' या 'अम्बपालिका' भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था। आम्रपाली कई लोककथाओं से संबंधित है। 

ज्ञान प्राप्ति के पाँच वर्ष बाद भगवान बुद्ध का वैशाली आगमन हुआ, जिसमें वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू आम्रपाली सहित चौरासी हजार नागरिक संघ में शामिल हुए। 

वैशाली के समीप कोल्हुआ में भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम सम्बोधन दिया था। इसकी याद में महान मौर्य महान सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दि ईसा पूर्व सिंह स्तम्भ का निर्माण करवाया था। महात्मा बुद्ध के महा परिनिर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्तूप बनवाये गये। वैशाली के समीप ही एक विशाल बौद्ध मठ है, जिसमें भगवान बुद्ध उपदेश दिया करते थे।

पाँचवी तथा छठी सदी के दौरान प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियान तथा ह्वेनसांग ने वैशाली का भ्रमण कर यहाँ का भव्य वर्णन किया है।

वैशाली जैन धर्मावलम्बियों के लिए भी काफी महत्त्वपूर्ण है। यहीं पर 599 ईसापूर्व में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन् वसोकुंड में हुआ था। भगवान महावीर यहाँ 22 वर्ष की उम्र तक रहे थे। इस तरह वैशाली भारत के दो महत्त्वपूर्ण धर्मों का केंद्र था। बौद्ध तथा जैन धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्त्वपूर्ण है।

संस्कृति और विरासत

 वैशाली आज केला और आम के पेड़ों के साथ-साथ चावल के खेतों से घिरा एक छोटा सा गाँव है।  लेकिन इस क्षेत्र में खुदाई से एक ऐतिहासिक ऐतिहासिक अतीत सामने आया है। इतिहासकारों का कहना है कि दुनिया की पहली लोकतांत्रिक गणराज्यों में से एक प्रतिनिधि सभा के साथ यहां 6 वीं शताब्दी .पूवज्जियों और लिच्छवियों का शासन था।  जब मौर्य और गुप्तों की राजधानी पाटलिपुत्र, गंगा के मैदान पर राजनीतिक बोलबाला था, वैशाली व्यापार और उद्योग का केंद्र था।

भगवान बुद्ध वैशाली में अक्सर आते थे। भगवान बुद्धो ने कोल्हुआ में अपने अंतिम उपदेश का प्रशार किया था।  इस घटना को मनाने के लिए सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी .पूयहाँ उनका एक प्रसिद्ध शेर स्तंभ बनाया था जो आज भी सुरक्षित है।  बुद्ध के महापरिनिर्वाण के सौ साल बाद - वैशाली ने दूसरी महान बौद्ध परिषद की मेजबानी की।  इस आयोजन को मनाने के लिए दो स्तूप बनवाए गए थे।  जैन धर्म की उत्पत्ति भी वैशाली से जुड़ी हुई है।  527 ईसा पूर्व में भगवान महावीर शहर के बाहरी इलाके में पैदा हुए थे, और वैशाली में 22 साल की उम्र तक रहे थे। वैशाली बौद्ध और जैन दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान बना हुआ है। 

वैशाली के दर्शनीय स्थल

राजा विशाल का गढ़

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लगभग एक किलोमीटर परिधि के चारों तरफ दो मीटर ऊँची दीवार है जिसके चारों तरफ 43 मीटर चौड़ी खाई थी। समझा जाता है कि राजा विशाल का राजमहल या लिच्छ्वी काल का संसद है।

इसकी शुरुआत एक विशाल टीले से होती है, जो राजा विशाल का गढ़ को संदर्भित प्राचीन संसद से जुड़ा है।  बावन पोखर मंदिर में गुप्त और पाल काल के पीछे काली बेसाल्ट छवियों का एक समृद्ध संग्रह है।  यहां के एक जलाशय से काले बेसाल्ट पत्थर का बना चार सिर वाले शिवलिंग (चौमुखी महादेवा)  मिला है जिसे पास के एक मंदिर में रखा हुआ है।

विश्व शांति स्तूप वैशाली

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विश्व शांति स्तूप वैशाली

विश्व शांति स्तूप वैशाली का निर्माण, जापानी बौद्ध के निपोप्जंन मयोहोजी सम्प्रदाय ने करवाया था। इस स्तुप का व्यास 65 फीट का है और इसके स्तुप का आकार 125 फुट लंबा है। शांति का संदेश देने के लिए उन्होने वैशाली में एक पैगोडा की स्थापना की। यह स्तुप, शांति का प्रतीक है। इस शांति स्तुप में भगवान बुद्ध के अवशेष, सोने के गहने और कांच का काफी सामान रखा है।

यह वास्तव में विशाल, सफेद, सुंदर स्तूप है जो चारों ओर हरियाली और एक तालाब से घिरा हुआ है। यहां आप ताजी हवा में सांस लेते हुए ख़ुशी के कुछ पल बिता सकते हैं। 

अभिषेक पुष्करणी

वैशाली में नव निर्वाचित शासक को इस सरोवर में स्नान के पश्चात अपने पद, गोपनीयता और गणराज् के प्रति निष्ठा की शपथ दिलायी जाती थी। इसी के नजदीक लिच्छवी स्तूप तथा विश्व शांति स्तूप स्थित है।

अभिषेक पुष्कर्णी को राज्याभिषेक टैंक के रूप में जाना जाता है और लिच्छवियों के समय इस सरोवर  के पवित्र जल का उपयोग निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनकी प्रतिज्ञा से पहले अभिषेक के लिए किया जाता था। 

वैशाली संग्रहालय

वैशाली संग्रहालय | खुदाई में मिलीं कलाकृतियां image download

खुदाई में मिलीं कलाकृतियां 

वैशाली संग्रहालय में खुदाई के दौरान पाई जाने वाले पुरावशेषों को प्रदर्शित किया जाता है। इसे 1971 में भारतीय पुरातत् सर्वेक्षण द्वारा स्थापित किया गया था, जहां कई शानदार मुकुट, हार, गहने आदि को प्रदर्शित किया गया है। यहां के भूमिस्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध की बिना सिर की मूर्ति लगी हुई है।

वैशाली संग्रहालय में खुदाई  के दौरान मिली कलाकृतियों के संग्रह हैं, उन्हें चार दीर्घाओं में विभाजित किया गया है, जिसमें मानव आकृतियों के टेराकोटा आइटम, पहियों के साथ जानवरों की आकृतियों की टेराकोटा वस्तुएं, सिक्के, चींटियां, हड्डियां और  लोहे और तांबे की वस्तुएं और मिट्टी का सामान।

इन सामानों के अलावा, इस संग्रहालय में गांव के लोगों के द्वारा आजादी से पूर्व का दिया सामान भी प्रदर्शन के लिए रखा गया है। यहां भगवान विष्णु की मूर्ति, उमा शंकर की मूर्ति आदि को भी रखा गया है। इस संग्रहालय में मध्यकालीन युग का काफी सामान जैसे रखा हुआ है। संग्रहालय में 2000 पुरावशेष रखे हुए है। यहां गुप् काल, मयूर काल और कुंहंस काल के दौरान का भी काफी समान रखा है।

कोल्हुआ

कोल्हुआ महत्त्वपूर्ण जगह भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया।  एक विशाल स्तूप और एक अच्छी तरह से बहाल अशोकन स्तंभ है, और प्रसिद्ध बंदर तालाब स्थानीय बच्चों को कूदने और तैरने के लिए पसंद करते थे।  इस स्थान पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। 

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बौद्ध स्‍तूप कोल्हुआ

कोल्लुआ में देखने लायक

बौद्ध स्तूप

दूसरे बौद्ध परिषद की याद में यहाँ पर दो बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया गया था। पहले तथा दूसरे स्तूप में भगवान बुद्ध की अस्थियाँ मिली है। यह स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है।

अशोक स्तम्भ  

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अशोक स्तम्भ कोल्हुआ वैशाली

वैशाली में हुए महात्मा बुद्ध के अंतिम उपदेश की याद में सम्राट अशोक ने नगर के समीप कोल्हुआ में लाल बलुआ पत्थर के एकाश्म सिंह- स्तम्भ की स्थापना की थी। लगभग 18.3 मीटर ऊँचे इस स्तम्भ  के ऊपर घंटी के आकार की बनावट है जो इसको आकर्षक बनाता है।

कुण्डलपुर

यह जगह जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थान होने के कारण काफी पवित्र माना जाता है। वैशाली से इसकी दूरी 4 किलोमीटर के आसपास है।

वैशाली महोत्सव

प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस पर बैसाख पूर्णिमा को किया जाता है। अप्रैल के मध्य में आयोजित होनेवाले इस राजकीय उत्सव में देशभर के संगीत और कलाप्रेमी हिस्सा लेते हैं।

वैशाली तक कैसे पहुंचे

टैक्सी द्वारा वैशाली आसानी से पहुंचा जा सकता है और यह पटना या मुजफ्फरपुर से एक दिन की यात्रा है।  पटना से वैशाली 63 किलोमीटर, मुजफ्फरपुर से 36 किलोमीटर और हाजीपुर से 37 किलोमीटर दूर है।

वैशाली में कहां ठहरना है

वैशाली में  केवल एक होटल है। बिहार सरकार द्वारा वैशाली का विकास किया जा रहा है जहा  भविस्य में और भी होटल खुल सकेंगे यह पटना या मुज़फ़्फ़रपुर से केवल एक दिन की यात्रा है, जहाँ ठहरने के लिए अच्छा होटल मिल सकता है।  रात में पटना में रुक कर कई और महत्वपूर्ण जगहों को देख सकते है।

कोल्हुआ वैशाली का लोकेशन

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