हिमालय (The Himalayas)
हिमालय एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है। पर्वतराज हिमालय भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा। हिमालय की पर्वत श्रंखलाएँ को शिवालिक भी कहा जाता हैं। हिमालय को स्वर्ग की संज्ञा दी गई है, सदियों से हिमालय की गुफाओं में ऋषि-मुनियों का वास रहा है। वे वहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते रहे हैं।
हिमालय पृथ्वी पर होकर भी स्वर्ग है और इसके बिना जीवन संभव नहीं। हिमालय एक ऐसा पर्वत श्रृंखला है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। हिमालय की तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक पर्वत से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों की ओर है और इसका केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है। इन तीन मुख्य पर्वत श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी पर्वत श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश पर्वत श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत विश्व के 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं। हिमालय पाकिस्तान, अफगानिस्तान,भारत, नेपाल,भूटान, चीन और म्यांमार के इलाकों में फैला हुआ है।
हिमालय की उत्पत्ति | हिमालय का निर्माण
हिमालय की उत्पत्ति दो प्लेटों के टकराने के कारण हुई है। टकराव से पहले भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था और यह भु-भाग अफ्रीका से सटा हुआ था। अफ्रीका से टुटने के बाद भारतीय प्लेट की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा।
ऊपरी क्रीटैशियस काल में (लगभग 840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर बढना प्रारंभ किया और तकरीबन 6000 किलोमीटर की दूरी तय कर उत्तर में यूरेशियाई प्लेट से टकराया। यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद (लगभग 650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई।
पहली टकराव से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है तथा भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के उल्टी दिशा में घूम चुका है।
विश्व की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय पर्वत श्रृंखला में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च पर्वत शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय के प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, शिवशंकर, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।
हिमालय पर्वत श्रृंखला में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मापुत्र।
हिमालय में भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश मानसरोवर तथा अमरनाथ, शाकम्भरी इत्यादि प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इन धार्मिक स्थलों का उल्लेख मिलता है
पर्यावरण के लिए हिमालय का महत्व
भारत की विविधता में हिमालय का बहुत बड़ा योगदान है। हिमालय के कारण भारत में छह ऋतुएं हैं, जिससे यहां जैविक और सांस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है। ऐसा विविधता विश्व में कहीं भी और किसी भी देश में नहीं है।
हिमालय पर्वत श्रृंखला में उगने वाले पेड़ो और वहां रहने वाले जीव-जंतुओं की विविधता जलवायु, वर्षा, ऊंचाई और मिट्टी के अनुसार हमेशा बदलती हैं। जहाँ पर्वत के नीचले इलाकों में जलवायु उष्णकटिबंधीय होती है, वहीं ऊंची चोटी के पास स्थायी रूप से सालों भर बर्फ जमी रहती है। कर्क रेखा के निकट स्थित होने के कारण हिमालय में स्थायी बर्फ का स्तर आमतौर पर लगभग 5500 मीटर (18,000 फीट) का होता है। दुनिया में कहीं भी इतना ज्यादा बर्फ का स्तर नहीं है, तुलना के लिए, न्यू गिनी के भूमध्य पहाड़ों में बर्फ का स्तर 900 मीटर (2950 फीट) नीचे ही है।
हिमालय (Himalay) के दोहन से पर्यावरण को खतरा
एनआइएच के वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में हिमालय में बारिश और बर्फबारी का समय बदल गया है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से झीलें के बनने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। मानव ने अपनी गतिविधियों व प्रदूषण से हिमालय के पर्यावरणीय सेहत पर खासा असर डाला है। विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों व भूमि की कटाई-छंटाई, लगातार वनों से अमूल्य प्राकृतिक संपत्ति का दोहन हिमालयी पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। आज हिमालयी क्षेत्र की समूची जैव विविधता भी खतरे में हैं। इसके कई कारण हैं। हिमालय के वनों से लगातार दोहन, वहां बार-बार लगने वाली अनियंत्रित आग, तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों का पिघलना, जैव विविधता का बड़े पैमाने पर कम या लुप्त होने के साथ साथ कई बड़ी नदियों का सूखना आदि प्रमुख कारण हैं।
इन सबके अलावा खत्म होते भूजल स्रोत, विकास के नाम पर पहाड़ों का खोखला तथा दोहन किया जाना, पर्यटन के नाम पर मानव द्वारा फैलाया गया कचरा व प्रदूषण हिमालय के पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं। खराब वन प्रबंधन और लोगों में जागरूकता की कमी भी हिमालयी पर्यावरण के खतरे का कारण हैं। विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतों और डैम का निर्माण, रेलवे का विस्तार के साथ साथ सड़कों का चौड़ीकरण। भारी विस्फोटकों के जरिए अंधाधुंध कटाई-छंटाई से पहाड़ कमजोर हो गए, पहाड़ अब हल्की बारिश होने पर भी टुटने/धंसने या गिरने लगते हैं।
हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से 50 से भी अधिक ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, वे धीरे धीरे खत्म हो रहें हैं। ग्लेशियरों के सिकुड़ने या खत्म होने का सीधा प्रभाव हिमालयन वनस्पतियों व वहां रहने वाले जीव जंतुओं, वनों के साथ-साथ निचले हिमालय क्षेत्रों में पैदा होने वाले फसली पौधों तथा हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा। इसके अलावा भारत के पूरे भू-भाग पर इसका असर पड़ेगा। इसलिए ग्लेशियरों को खत्म होने से बचाने के समय रहते उपाय ढूढ़ने होंगे। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय क्षेत्र की जैव विविधता के खतरे उत्पन्न हो गया हैं। हिमालय में बदलता पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र हमारी आने वाली पीढियों के लिए वायु, जल एवं अन्न की कमी का कारण बन सकता है।
जलवायु में परिवर्तन, ग्लेशियरों का पिघलना और खत्म होना, वर्षा एवं बर्फबारी के समय चक्र में परिवर्तन, समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ने से पूरी दुनिया के सामने एक नया संकट पैदा होने वाला हैं। ऐसी खतरनाक परिस्थिति से निपटना इंसान के लिए चुनौती भरा काम होगा। इंसान यह भूल गए हैं कि अगर हिमालय सुरक्षित नहीं रहेगा तो, भारत और उसके आसपास के देश और उनके आने वाली युवा पीढींया भी सुरक्षित नहीं रहेगी।
हिमालय को बचाना होगा
इसलिए हिमालय को सुरक्षित व संभाल कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी बनती है। हिमालय की नैसर्गिक खूबसूरती और जैव विविधता जितनी हिमालयन पर्यावरण के लिए अच्छा है, उससे कहीं ज्यादा हमारे लिए जरूरी है। हिमालय का संरक्षण तभी हो पाएगा, जब सभी लोग हिमालय के महत्व और उसके उपकारों को समझेंगे। हिमालय में बसने वाले स्थानीय लोगों के साथ-साथ हमारी भावी पीढ़ी खास कर नवयुवाओं को भी हिमालय के संरक्षण के लिए जागरूक होना पड़ेगा। हम सबको आगे बढकर हिमालय के हित के लिए कार्य करना पड़ेगा।
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