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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पोते ने कही बहुत बड़ी बात ! देश को आजादी ऐसे मिली ।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

२३ जनवरी २०२१ को नेताजी की १२५वीं जयन्ती था जिसे भारत सरकार ने 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।

आजाद हिंद फौज में कोई हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई नहीं था । 

Subhash Chandra Bose original picture


चंद्र कुमार बोस जो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते हैं, एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने बहुत बड़ी बात कही। ‌ उन्होंने खुलासा किया कि देश को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस जी ने आजाद हिंद फौज बनाई थी। आजाद हिंद फौज के 60,000 सैनिको में कोई भी मुस्लिम, हिंदू , सिख और ईसाई धर्म से नहीं था। सब के सब हिंदुस्तानी थे और उन्होंने एकजुट होकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। कोई भी अपने आप को धर्म से नहीं जोड़ रखा था। हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सब ने मिलकर एक हिंदुस्तानी के रूप में अंग्रेजों से लोहा लिया था। उनकी एकता के आगे अंग्रेजी सेना टिक नहीं पाए। 

जन्म और परिवारिक जीवन

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में  में हुआ था । उनके पिता जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था।  जानकिनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे। 

शिक्षादीक्षा से लेकर आईसीएस तक का सफर

पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से चौबीस घण्टे का समय यह सोचने के लिये माँगा ताकि वे परीक्षा देने या न देने पर कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। सारी रात इसी असमंजस में वह जागते रहे कि क्या किया जाये। आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गये। परीक्षा की तैयारी के लिये लन्दन के किसी स्कूल में दाखिला न मिलने पर सुभाष ने किसी तरह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु उन्हें प्रवेश मिल गया। इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी। हाल में एडमीशन लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस में पास होकर दिखाना था। सो उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए पास कर ली।

स्वतन्त्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका


नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।

1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं।

नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है


नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये?(यथा सभंव नेता जी की मौत नही हूई थी) 

16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया।

आज भी देश की जनता को नेतिजी के मृत्यु के बारे में खुफिया दस्तावेजों का इंतजार है। 

राजनीतिक दलों द्वारा नेतिजी के नाम का इस्तेमाल होता है परन्तु उनके विचार धारा का सम्मान नहीं। 

नेताजी ने किसी भी तरह से धार्मिक और जातिगत भेदभाव नहीं किया था। 
वे मानवता में विश्वास करते थे और  हिंदुस्तान को आजाद कराने में लगे रहे। 

 २३ जनवरी २०२१ को नेताजी की १२५वीं जयन्ती है जिसे भारत सरकार ने 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।









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