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Nalanda (नालंदा) | नालंदा का खंडहर | Nalanda University

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प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय।‌ Ruins of Nalanda University| Things to do in Nalanda

नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक बहुचर्चित जिला है जिसका मुख्यालय बिहार शरीफ है। नालंदा अपने प्राचीन् इतिहास के लिये विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ विश्व कि सबसे प्राचीन् नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौज़ूद है, जहाँ दूर दूर के अनेक देशों से छात्र अध्ययन के लिये भारत आते थे।

नालंदा वर्तमान बिहार राज्य में पटना हवाई अड्डा से 100 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 16 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। 

नालन्‍दा विश्‍वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्‍जेंडर कनिंघम ने  ह्वेनसांग की डायरी के आधार पर की थी। माना जाता है कि इस विश्‍वविद्यालय  की स्‍थापना 450 ई॰ में गुप्त शासक कुमारगुप्‍त ने की थी। इस विश्‍वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सर्मथन मिला।  इस विश्‍वविद्यालय को 12वीं शताब्‍दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने जला डाला। जो कुत्तुबुद्ददीन का सिपह-सलाहकार था।

नालंदा का इतिहास | History of Nalanda University

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Ruins of Nalanda Mahavihara

माना जाता है कि भगवान बुद्ध कई बार नालंदा आए थे। यही वजह है कि पांचवी से बारहवीं शताब्दी में इसे बौद्ध शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता था। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यात्रियों की संख्या ज्यादा थी। गुप्त राजवंश ने प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से निर्मित इन मठों का संरक्षण किया। यह किसी आंँगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्तियों के समान दिखाई देते हैं। सम्राठ अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था। हाल ही में विस्तृत खुदाई यहां संरचनाओं का पता लगाया गया है। यहां पर सन् 1951 में एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई थी।  नालंदा आने वाले लोग यहां के महान खंडहरों के अलावा 'नव नालंदा महाविहार संग्रहालय भी देख सकते हैं।

ऐतिहासिक उल्लेख |Historical Mention / Archives


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Hostel Building

नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में भारत के इतिहास को पढ़ने आया था के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। सातवीं शताब्दी में जब ह्वेनसाङ नालंदा आए थे उस समय 10,000 विद्यार्थी और 1510 आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों जैसे कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था। 

नालंदा  विश्वविद्यालय का स्वरूप | Structure 

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Math | मठ

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए दीवार में आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी।

नालंदा विश्वविद्यालय का प्रबंधन | Management

नालंदा विश्वविद्यालय का समस्त प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे। कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथम समिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्य देखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख-भाल करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिले आस पास के गाँवों से प्राप्त उपज और आय की देख-रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था।‌

नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य |Teacher

नालंदा विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7 वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे।

नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी और उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक था।

नालंदा विश्वविद्यालय के अध्ययन क्षेत्र|Study Subjects

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओं का सविस्तार अध्ययन होता था। वेद, वेदांत और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे। नालंदा की खुदाई में मिली अनेक काँसे की मूर्तियो के आधार पर कुछ विद्वानों का मत है कि कदाचित् धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग भी था।

प्रसिद्ध चीनी विद्वान यात्री ह्वेन त्सांग और इत्सिंग ने कई वर्षों तक यहाँ सांस्कृतिक व दर्शन की शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत व संस्मरणों में नालंदा के विषय में काफी कुछ लिखा है।  ह्वेनत्सांग ने लिखा है कि सहस्रों छात्र नालंदा में अध्ययन करते थे और इसी कारण नालंदा प्रख्यात हो गया था। दिन भर अध्ययन में बीत जाता था। विदेशी छात्र भी अपनी शंकाओं का समाधान करते थे। इत्सिंग ने लिखा है कि विश्वविद्यालय के विख्यात विद्वानों के नाम विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर श्वेत अक्षरों में लिखे जाते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय | Library

नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें लगभग 3 लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। 'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।

प्राचीन अवशेषों का परिसर | Ruins Remaining

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Burn mark on wall | जलने का निशान
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 Class Room

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Hostel 


नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष चौदह हेक्टेयर क्षेत्र में मिले हैं। खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर के पूर्व दिशा में व चैत्य (मंदिर) पश्चिम दिशा में बने थे। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-1 थी। आज में भी यहां दो मंजिला इमारत शेष है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बनी हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की भग्न प्रतिमा बनी है। यहां स्थित मंदिर नं. 3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां बनी हुई है।

नालंदा विश्वविद्यालय का अवसान

13 वीं सदी तक इस विश्वविद्यालय का पूर्णतः अवसान हो गया। मुस्लिम इतिहासकार मिनहाज़ और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के वृत्तांतों से पता चलता है कि इस विश्वविद्यालय को तुर्कों के आक्रमणों से बड़ी क्षति पहुँची। 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।  पुस्तकालय की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं किस में रखे हुए पुस्तक कई महीनों तक जलते रहे।

अन्य महत्वपूर्ण स्थल 

नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय

विश्वविद्यालय परिसर के विपरीत दिशा में एक छोटा सा पुरातात्विक संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। इनके साथ ही बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियां और प्रथम शताब्दी के दो मर्तबान भी इस संग्रहालय में रखा हुआ है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तांबे की प्लेट, पत्थर पर खुदे अभिलेख, सिक्के, बर्त्तन तथा 12 वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।

नव नालंदा महाविहार

यह एक शिक्षण संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा शोध होती है। यह एक नया स्थापित संस्थान है। इसमें दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए यहां आताे हैं।

ह्वेनत्सांग मेमोरियल हॉल

यह एक नवर्निमित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग की स्मृति में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुएं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकती है।

नालंदा कैसे पहुंचे

वायु मार्ग: यहाँ से 100 किलोमीटर दूर निकटतम हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है।

रेल मार्ग: नालंदा में भी रेलवे स्टेशन है, किन्तु यहां का प्रमुख रेलवे स्टेशन राजगीर है। राजगीर जाने वाली सभी ट्रेने नालंदा होकर जाती है।

सड़क मार्ग: नालंदा सड़क मार्ग द्वारा कई निकटवर्ती शहरों से जुड़ा है:

*राजगीर (16 किमी),

बोधगया (83 किमी),

गया (72 किमी),

पटना (100 किमी),

पावापुरी (15 किमी) तथा

बिहार शरीफ (15 किमी)

नालंदा में कहां रुके

नालंदा में रूकने के लिए अच्छे होटल उपलब्ध नहीं है।‌ टूरिस्ट पटना या राजगीर में रुक सकते हैं जहां अच्छे होटल की सुविधा है।

‌नजदीकी पर्यटन स्थल

राजगीर | Rajgir

नालंदा आने वालों को राजगीर भी जरुर घूमना चाहिए।

राजगीर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके प्राप्त कर सकते हैं।

https://www.politicalfunda.com/2021/03/beautiful-places-in%20india.html

https://youtu.be/28DHL1F_Jyg

https://youtu.be/paAOKxBFoqw

https://youtu.be/TyiQ2RzSemQ

https://youtu.be/yFkNHrAYTm8

नालंदा से 16 किलीमीटर दूर राजगीर भी एक अंतराराष्ट्रीय पर्यटन स्थल है. यह भी बोध धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।

नीचे दिए गए लिंक पर राजगीर के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, कई साम्राज्यों की राजधानी के रूप में जैन धर्म में राजगीर का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मुख्य पर्यटन आकर्षणों में अजातशत्रु के काल की प्राचीन शहर की दीवारें, बिंबिसार की जेल, जरासंध का अखाड़ा, कृष्ण का रथ का पहिया चिह्न, राजगीर के गर्म जल के झरने / ब्रह्मकुंड, गृद्धकूट पर्वत ('गिद्धों का पहाड़'), सोन भंडार गुफाएँ/  स्वर्ण भंडार, रोपवे और विश्व  शांति स्तूप।

The main tourist attractions include the ancient city walls from Ajatshatru's period, the Bimbisar's Jail, Jarasandh's Akhara, The Krishna Charriot wheel mark,  Rajgir Hot Spring / Brahmakund, Gridhra-kuta, ('Hill of the Vultures'), Son Bhandar Caves & Vishva Shanti Stupa & Ropeway.

यहां का विश्व शांति स्तूप काफी आकर्षक है। यह स्तूप ग्रीधरकूट पहाड़ी पर बना हुआ है। इस पर जाने के लिए रोपवे बना हुआ। इसका शुल्क 80 रु. है। इसे आप सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक देख सकते हैं। इसके बाद इसे दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक देखा जा सकता है।

शांति स्तूप के निकट ही वेणु वन है। कहा जाता है कि बुद्ध एक बार यहां आए थे।

राजगीर में ही प्रसद्धि सप्तपर्णी गुफा है जहां बुद्ध के निर्वाण के बाद पहला बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया था। यह गुफा राजगीर बस पड़ाव से दक्षिण में गर्म जल के कुंड से 1000 सीढियों की चढाई पर है। इन सबके अलावा राजगीर में जरासंध का अखाड़ा, स्वर्ण भंडार (दोनों स्थल महाभारत काल से संबंधित है) तथा विरायतन भी घूमने लायक जगह है।  

पावापुरी | Pawapuri

नालन्दा से 5 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल पावापुरी स्थित है। यह स्थल भगवान महावीर से संबंधित है। यहां महावीर एक भव्य मंदिर है। नालन्दा-राजगीर आने पर इसे जरुर घूमना चाहिए।

बोधगया | Bodh Gaya

नालंदा से बोधगया 83 किमी दूर गया ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध नगर है, जिसका बहुत बड़ा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यहाँ महात्मा बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की थी।

बोधगया बिहार की राजधानी पटना से लगभग 125 किलोमीटर दूर दक्षिणपूर्व में स्थित गया जिले का एक छोटा शहर है। बोधगया में बोधि पेड़़ के नीचे तपस्या कर रहे भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।

बोधगया की जानकारी नीचे दी गई लिंक से प्राप्त कर सकते हैं।

https://www.politicalfunda.com/2021/03/bodh-gaya.html

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नालंदा विश्वविद्यालय का वीडियो नीचे दी गई लिंक पर देख सकते हैं।‌

https://youtu.be/0CCXVkf-EfE


नालंदा विश्वविद्यालय


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