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किसान आंदोलन 2020। क्या सरकार किसानों के आगे झुक जाएगी ? किसान आंदोलन का क्या परिणाम होगा ?




किसान आंदोलन क्यों हो रहा है‌।


पिछले 95 दिनों से देशभर के किसान अलग-अलग जगह पर सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। ‌

भारी संख्या में किसान दिल्ली के सिंधु बॉर्डर टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर टेंट लगाकर और ट्रैक्टर के साथ डटे हुए हैं। ‌

किसानों और सरकार के साथ डेडलॉक की स्थिति बनी हुई है और किसान आंदोलन का कोई परिणाम नहीं दिख रहा है। ‌ सरकार और किसान दोनों अपने-अपने ज़िद पर अड़े हुए हैं।‌ 

इस बीच किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर पर परेड किया था जिसमें कुछ असामाजिक तत्वों ने लाल किले पर तोड़फोड़ की और धार्मिक झंडा फहराया था।

बहुत सारे किसान आंदोलन के बीच अपनी जान गवा बैठे हैं। ‌ किसान सर्दियों में बारिश के बीच अपनी रात दिल्ली के बॉर्डर पर गुजारे हैं।

आखिर किसानों को इतनी मुसीबत क्या उठाने पड़ रहे है। ‌ कुछ तो बात है जो किसान समझने को तैयार नहीं है या सरकार किसानों की बात समझने को तैयार नहीं है। ‌

इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह की मुलाक़ात से भी कोई रास्ता नहीं निकला.

दिल्ली के बॉर्डर पर दिन रात बैठे किसान तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन के लिए तैयार है. सरकार यह भी दावा कर रही है कि नए क़ानूनों से किसानों का कोई नकुसान नहीं होगा.

इस बीच प्रधानमंत्री ने  संसद में एमएसपी जारी रखने की बात कही है।‌ प्रधानमंत्री ने किसानों से सिर्फ एक फोन कॉल की दूरी पर हूं किसान जब भी चाहे बात कर सकते हैं। ‌ 

इस पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत का का कहना है कि प्रधानमंत्री जी ने फोन कॉल की बात तो कह दी लेकिन किस नंबर पर बात करनी है यह तो बताया ही नहीं। 

मतलब साफ है सरकार और किसान दोनों सुनने को तैयार नहीं है।

क्या है तीनों कृषि कानून 2020 ?

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020

इस क़ानूनों के तहत किसान अपने कृषि उत्पादों की ख़रीद बिक्री एपीएमसी मंडी से अलग खुले बाज़ार में भी कर सकते हैं. किसान अपनी फसल की उपज किसी भी राज्य में जाकर बेंच सकते हैं। इस कानून के तहत प्राइवेट कंपनियों को खरीदी करने के लिए खुली छूट दी गई है।  

किसान इसी मुद्दे पर सबसे ज़्यादा विरोध कर रहे हैं.


  • किसानों का कहना है की प्राइवेट कंपनियों को सरकार ने टैक्स के दायरे से अलग रखा गया है जबकि वर्षों से चली आ रही मंडी व्यवस्था टैक्स के अंदर रखा गया है। 

  • शुरू में तो यह प्राइवेट कंपनियां अच्छी कीमत देकर खरीदारी करेंगे और लोग मंडियों में जाकर प्राइवेट कंपनी को फसल बेचेंगे। ‌इससे धीरे धीरे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और प्राइवेट कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा। ‌ बाद में यही कंपनियां मनमानी करेंगे और हमें कम कीमत देंगे।

  • किसानों का कहना है कि अगर वे एपीएमसी की मंडियों से बाहर बाज़ार दर पर अपना फसल बेचते हैं तो हो सकता है कि उन्हें थोड़े समय तक फ़ायदा हो लेकिन बाद में एपीएमसी की तरह निश्चित दर पर भुगतान की कोई गारंटी नहीं होगी.

  • इसमें छोटे किसान सबसे ज्यादा चिंतित है कि वह कैसे अपना फसल दूसरे राज्य में बेचेंगे। ‌ क्या गारंटी है कि जब वह फसल बेचने दूसरे राज्य में जाएंगे तो हा उनकी फसल खरीदी जाएगी और अच्छी कीमत दी जाएगी‌ ? 

  • वर्तमान में सबसे ज्यादा नुकसान इन छोटे किसानों का ही हो रहा है इनकी फसल बाजार भाव से आधी कीमत पर खरीदी जाती है और एमएसपी का कानून नहीं होने के कारण इन्हें मजबूरन अपना फसल बेचना पड़ता है।


  • प्रदर्शन कर रहे किसानों को इस बात की आशंका भी है कि इन क़ानूनों के रहते हुए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाएगा. हालांकि सरकार का कहना है कि 'कृषि क़ानून एपीएमसी सिस्टम और एपीएमसी मंडियों को प्रभावित नहीं करते हैं'. किसान यह भी पूछ रहे हैं कि एपीएमसी मंडियों के नहीं रहने पर आढ़तियों और कमीशन एजेंटों का क्या होगा?


2. कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020


इस क़ानूनों के तहत अनुबंधीय खेती को मंजूरी दी गई है. यानी अब किसान थोक विक्रेताओं, प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज और प्राइवेट कंपनी से सीधे अनुबंध करके अनाज का उत्पादन कर सकते हैं.


इसमें फसल की क़ीमत पर बात तय करके अनुबंध किया जा सकता है. सरकार का दावा है कि इस प्रावधान से किसानों को पूरा मुनाफ़ा होगा, बिचौलियों को कोई हिस्सा नहीं देना होगा.


लेकिन किसान अनुबंधीय खेती का विरोध कर रहे हैं. इसको लेकर किसानों की तीन प्रमुख चिंताएं हैं-


  • पहली चिंता तो यही है कि क्या ग्रामीण किसान निजी कंपनियों से अपने फसल की उचित क़ीमत के लिए मोलभाव करने की स्थिति में होगा?


  •  दूसरी चिंता, उन्हें आशंका है कि निजी कंपनियां गुणवत्ता के आधार पर उनके फसल की क़ीमत कम कर सकते हैं, ख़रीद बंद कर सकते हैं.


  • तीसरी चिंता यह है कि किसानों को अनुबंध के तहत बीज खाद और कीटनाशक उन्हीं प्राइवेट कंपनियों से खरीदना पड़ेगा जिनके साथ उनका अनुबंध है। 

  • इस पर किसानों का कहना है इससे अनुबंध करने वाले कंपनियों की मनमानी बढ़ेगी। वह हमसे इन सब लिए अधिक कीमत वसूल करेंगे। ‌ धीरे धीरे बाजार से वर्तमान में मौजूद कई बीज, खाद और कीटनाशक बनाने वाली  कंपनियां बंद हो जाएगी क्योंकि हो सकता है बाद में अनुबंध करने वाले कंपनी खुद का अपना ब्रांड लेकर आएंगे और किसानों को मनमाने कीमत पर बेंचे। किसानों के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं बचेगा और धीरे धीरे किसान उद्योगपतियों के चंगुल में फंसकर रह जाएगा।‌

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020

इस नए क़ानूनों की मदद से सरकार ने दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा चुकी है. सरकार का कहना है कि इससे इन उत्पादों के भंडारण पर कोई रोक नहीं होगी, इससे निजी निवेश आएगा और क़ीमतें स्थिर रहेंगी.

किसानों की चिंता।‌

  • किसानों का कहना है कि इन प्रावधानों से निजी कंपनियां बड़े पैमाने पर इन उत्पादों का भंडारण करने लगेंगी और अपने फायदे के लिए बाज़ार में इन उत्पादों की आपूर्ति में कृत्रिम कमी पैदा की जाएगी.


  • किसानों का यह भी कहना है कि जब उन्हें ऐसी कंपनियों की इच्छा के मुताबिक़ उत्पादन करना होगा और उन्हें क़ीमतें भी कम मिलेंगी.


  • इन क़ानूनों के ज़रिए मौजूदा एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) की मंडियों के साथ साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की ख़रीद और भंडारन के अलावा बिक्री करने का अधिकार होगा.


  • विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों को इस बात की आशंका है कि सरकार किसानों से गेहूं और धान जैसी फसलों की ख़रीद को कम करते हुए बंद कर सकती है और उन्हें पूरी तरह से बाज़ार के भरोसे रहना होगा.


  • किसानों को इस बात की आशंका भी है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य के ख़त्म होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी।


हालांकि तीनों नए क़ानूनों में एपीएमसी मंडियों के बंद करने या एमएसपी सिस्टम को ख़त्म करने की बात शामिल नहीं है लेकिन किसानों को डर यह है कि इन क़ानूनों के ज़रिए निजी कंपनियों के इस बाज़ार में आने से अंत में यही होना है.

निजी क़ानूनों के ज़रिए मौजूदा एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) की मंडियों के साथ साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की ख़रीद और भंडारन के अलावा बिक्री करने का अधिकार होगा.




किसान आंदोलन की मौजूदा स्थिति। ‌


कुल मिलाकर किसानों और सरकार के बीच डेडलॉक की स्थिति बनी हुई है। ‌ इस बीच किसान नेता देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर किसान महापंचायत कर रहे हैं। ‌ लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे है तथा उनसे अपील कर रहे हैं किसानों का साथ दें।‌
इसी बीच किसान नेता 40 लाख ट्रैक्टरों के साथ संसद का घेराव करने की बात कर रहे हैं।‌ 

धीरे-धीरे राजनीतिक पार्टियां भी किसानों को समर्थन करने लगी है और महापंचायत में हिस्सा लेने लगी है। 

अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार किसानों की बात सुनती है और तीनों कानून को वापस लेती है ?  क्या किसान आंदोलन इसी तरह से धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा ?



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1 Comments

  1. किसान कानून के बारे में बहुत अच्छे से समझाया है. Good 👍

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