विधानसभा चुनाव 2022: कांग्रेस का खराब प्रदर्शन, 2024 में जीतने के लिए कांग्रेस में बदलाव जरूरी
कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जो बड़ा झटका लगा है। चार राज्यों में कांग्रेस चुनाव जीतने के मौकों को गंवा दिया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन नतीजा थोड़ा और अच्छा हो सकता था।
कांग्रेस आलाकमान को जल्दी ही निर्णय लेना होगा, पार्टी में छुपे हुए जनाधार विहीन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाना होगा। अभी भी पार्टी में ऐसे लोग भरे हुए हैं जिनका वोटरों के बीच कोई जनाधार नहीं है। ऐसे लोगों के गलत बयानी से भी जनता में गलत संदेश गया है और पार्टी को नुकसान हुआ है।
तीसरे मोर्चा की बात जोर पकड़ेगी
इन पांच राज्यों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से 2024 के चुनाव में कांग्रेस को केंद्रीय नेतृत्व के लिए अब अन्य दलों से भी मुकाबला करना होगा। इन नतीजों के कारण अब कई अन्य दल विशेष रूप से आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस को तीसरे मोर्चा बनाने और उसे लीड करने के लिए सोचेंगे। इन चुनावों में अपमानजनक हार से पार्टी में और घमासान होना लगभग तय है।
हालांकि बिना कांग्रेस के कोई तीसरा मोर्चा काम नहीं करेगा। 2024 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आएगी, बस पार्टी में थोड़ा सुधार की जरूरत है।
Humbly accept the people’s verdict. Best wishes to those who have won the mandate.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 10, 2022
My gratitude to all Congress workers and volunteers for their hard work and dedication.
We will learn from this and keep working for the interests of the people of India.
अध्यक्ष चुनने के साथ ही बदलाव की जरूरत है
विधानसभा चुनावों में पहला वोट डाले जाने से पहले ही, विपक्षी खेमे में यह बड़बड़ाहट थी कि कांग्रेस तेजी से भाजपा विरोधी पार्टियों का नेतृत्व करने के लिए अपनी क्षमता और दावा नैतिक और चुनावी रूप से खो रही है, आम आदमी पार्टी ने पंजाब में कांग्रेस को हरा दिया और भाजपा ने उत्तराखंड और गोवा में पार्टी को तगड़ा झटका दिया, ऐसे में कांग्रेस अस्तित्व के संकट की ओर देख रही है। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की जीत लगभग तय थी उसके बाद भी चुनाव को हार जाना केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर रहा है।
इस साल पार्टी को एक नया अध्यक्ष चुनने के साथ, परिणाम निस्संदेह राहुल गांधी विरोधी खेमे के तरकश में पार्टी में लोकतंत्रीकरण की तलाश में एक और तीर बन जाएगा। गांधी परिवार के वर्चस्व को कम करने के लिए एक सामूहिक नेतृत्व मॉडल, कांग्रेस के लिए एक अपेक्षाकृत विदेशी अवधारणा को स्थापित करने के लिए आह्वान किया जाएगा।
G-23 को बाहर करना जरूरी हो गया है
यह देखना होगा कि क्या जी-23 का हिस्सा होने वालों के अलावा कोई नेता बोलने और नेतृत्व को आईना दिखाने की हिम्मत रखता है या नहीं। हालांकि इन G-23 के नेताओं का अपना कोई जनाधार नहीं है, वे खुद अपना चुनाव नहीं जीत सकते लेकिन कांग्रेस आलाकमान पर सवाल खड़े करने में सबसे आगे रहते हैं। इन जनाधार विहीन नेताओं के गलत बयानी से हुई कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाता है और कांग्रेस पार्टी को नुकसान होता है। कांग्रेस के सेंट्रल टीम में खींचतान से भी पार्टी को नुकसान हो रहा है।
कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं
अपने लंबे-चौड़े दावों के बावजूद, तृणमूल कांग्रेस की गोवा की चाल में कोई कमी नहीं आई, लेकिन एनसीपी जैसे सहयोगी दलों और राजद जैसे दोस्तों सहित विपक्ष के कई दलों को लगता है कि भाजपा विरोधी समूह को शैली, सार और नेतृत्व दोनों में एक नए रूप की जरूरत है। तृणमूल कांग्रेस को भी पता चल गया है बंगाल के छोड़ कर किसी और राज्य में उसका जनाधार नहीं है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही विपक्षी नेताओं की एक बैठक बुलाने के अपने इरादे का संकेत दे दिया है, एक ऐसा कदम जिसने कांग्रेस को आश्चर्यचकित नहीं किया है। कांग्रेस नेताओं से अब तक यही परहेज था कि वे 10 मार्च का इंतजार करें। हकीकत अब सामने आ गई है।
कुछ नेताओं ने भविष्यवाणी की है कि कांग्रेस विभाजन की ओर बढ़ सकती है। यह और बात है कि हरियाणा में शायद भूपेंद्र सिंह हुड्डा को छोड़कर, कांग्रेस में ऐसे कई नेता नहीं हैं जिनमें पार्टी के लिए 10 या 20 सीटें जीतने की क्षमता हो, एक राज्य को छोड़ दें। और यह एक ऐसा पहलू है जिस पर राहुल समूह बार-बार जोर देते हैं, प्रत्येक परिवार के प्रति अडिग वफादारी साबित करने के लिए उत्सुक हैं।
अगर कांग्रेस का विभाजन होता है तो देश की जनता गांधी परिवार के साथ रहेगी। कोई भी जनता जनाधार विहीन G-23 के साथ जाना नहीं पसंद करेंगी।
पंजाब में हार का कारण
लेकिन कई नेता, यहां तक कि वे जो गांधी परिवार के प्रति वफादार हैं, महसूस करते हैं कि पंजाब में नेतृत्व का व्यवहार सही नहीं था। कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि कांग्रेस ने खुद को बर्बाद कर लिया। चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद भी केंद्रीय नेतृत्व नवजोत सिंह सिद्धू को नियंत्रित नहीं कर सका। यह एक दलित नेता को मुख्यमंत्री के रूप में उभारने का अच्छा मौका था लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू की खींचतान और गलत बयानी ने पार्टी को डुबो दिया। सिद्धू के राजनीतिक अंत हो गया और कांग्रेस को पंजाब में खड़े होना मुश्किल। सिद्धू की इतने सारे गलतियों के बाद भी पार्टी में बनाए रखने से कांग्रेस को भारी नुक़सान उठाना पड़ा।
गोवा में हार का कारण
वोटों में बंदरबांट का फायदा बीजेपी को मिला और कांग्रेस चुनाव हार गई। मात्र 33% वोटों के साथ चुनाव जीतने में सफल रही है। बाकी के 76% वोटों का बंदरबांट हुआ, कांग्रेस वोटरों को एकजुट करने में नाकाम रही है।
उत्तराखंड में हार का कारण
उत्तराखंड कांग्रेस के लिए केकवॉक था, आसानी से चुनाव जीता जा सकता था। जिस राज्य में बीजेपी को 3-3 बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा, खुद CM पीछे चल रहें हों फिर उस राज्य में एंटी इनकंबेंसी के बावजूद कांग्रेस की हार के बाद पार्टी को आत्ममंथन ही नहीं करना चाहिए और अपने भविष्य के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। यहां भी भाजपा को करीब 44% वोट मिलते हुई दिखाई दे रहा है। बहुजन समाज पार्टी और अन्य के कारण कांग्रेस को नुकसान हुआ है।
निष्कर्ष
कांग्रेस को अपने अंदर बदलाव लाना होगा, नए लोगों को साथ लेकर चलना होगा। G-23 के लोगों को बाहर का रास्ता दिखाना जरूरी हो गया है और वह भी बिना समय गंवाए। 2024 में भाजपा के विरुद्ध जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी रहने वाली है। 2 साल में भाजपा कुछ नहीं कर पाएगी और जनता की नाराज़गी बढ़ना लाजमी है। कांग्रेस आलाकमान को मिला समय कब आए हुए हैं काम करना होगा। नया समीकरण बनाना होगा, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में जातीय समीकरण को भी समावेशित करना होगा।
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