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Guru Nanak | गुरु नानक देव जी के जीवनी

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गुरु नानक (Guru Nanak)

गुरु नानक जयंती 2022 शुक्रवार 08 नवंबर को है।‌‌ आइए गुरु नानक देव जी के जीवन के बारे में जानें।‌

गुरु नानक सिखों के प्रथम (आदि ) गुरु हैं, गुरु नानक जी के अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु - सभी के गुण समेटे हुए थे।

गुरु नानक जी का जीवन परिचय

गुरु नानक जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवण्डी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा के दिन 1469 ईस्वीं में हुआ था। गुरु नानक के माता-पिता खत्रीकुल से थे।‌ आज तलवण्डी पाकिस्तान (बंटवारे के बाद) में पंजाब प्रान्त का एक नगर है। कुछ विद्वान नानक जी की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। लेकिन प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। नानक जी के पिता का नाम मेहता कालूचन्द खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवण्डी गांव का नाम बाद में गुरू नानक जी के नाम पर ननकाना पड़ गया। गुरु नानक जी की बहन का नाम बहन नानकी था।

बचपन से ही गुरु नानक जी मे प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन ही से नानक जी सांसारिक जीवन से उदासीन रहा करते थे। इस कारण पढ़ने-लिखने में इनका मन नहीं लगा। 7-8 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा क्योंकि भगवान की प्राप्ति के सम्बन्ध में नानक जी के सवालो आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ गए। उसके बाद नानक जी अफना सारा समय आध्यात्मिक चिन्तन और सत्संग में बिताने लगे। गुरु नानक जी के बचपन में कई चमत्कारिक घटनाएँ घटीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में प्रमुख लोगों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार थे।

गुरु नानक जी का विवाह बचपन मे ही सोलह साल की उम्र में गुरदासपुर जिले के लाखौकी गांव के रहनेवाले मूला जी की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। तत्पश्चात 32 वर्ष की उम्र में इनके प्रथम पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। इसके चार वर्ष बाद दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरान्त गुरु नानक 1507 ईस्वी में अपने पूरे परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।‌‌ साथ में नानक जी के चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास जी भी थे। गुरु नानक के दोनों पुत्रों में से श्रीचन्द जी आगे चलकर उदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक बने।

गुरु नानक जी की उदासियाँ

गुरु नानक चारो ओर घूमकर उपदेश देने में लगे रहे। 1521 तक नानक जी ने चार यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें उन्होंने ने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। गुरु नानक जी के इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ कहा जाता है।

गुरु नानक जी के दर्शन

नानक सभी ईश्वर में विश्वास करने वाले थे। गुरु नानक जी मूर्तिपूजा के घोर विरोधी थे। उन्होंने सनातन धर्म की मूर्तिपूजा की शैली के उलट एक परमात्मा की उपासना मे विश्वास रखते हुए एक अलग मार्ग मानवता को दिया। उन्होंने हिन्दू पंथ में सुधार के लिए अनेकों कार्य किये। साथ ही नानक जी ने उस समय के राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी दृष्टि डाली। सन्त साहित्य में गचरु नानक उन सन्तों की श्रेणी में आते हैं हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन और सम्मान दिया है।

लंगर की शुरुआत

लंगर की शुरुआत गुरु नानक देव जी ने ही किया था। ‌सिख पंथ में लंगर की प्रथा लगभग १५ वीं सदी में शुरू हुई थी। श्री गुरू नानक देव जी ने अपनू उपदेशों और वाणी में, जो एकता और भाईचारे का संदेश दिया था उससे स्पष्ट होता है कि लंगर प्रथा श्री गुरू नानक देव जी के समय में ही शुरू हुई थी। लंगर में बिना भेदभाव के हर किसी को शामिल होने का हक प्राप्त है। ‌आज भी सैकड़ों सालों से या प्रथा चालू है। ‌

साहित्य

हिन्दी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से सम्बन्ध रखते थे। भक्तिभाव से पूर्ण होकर नानक जी जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह गुरु ग्रन्थ साहब में किया गया है।

गुरु नानक जी की मृत्यु

जीवन के अन्तिम दिनों में गुरू नानक जी की ख्याति बहुत बढ़ गई और इसके साथ ही इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं गुरु नानक अपने परिवार के साथ रहने लगे और मानवता कि सेवा में अधिक समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक शहर बसाया, जो कि भारत के बंटवारा के बाद पाकिस्तान में है और बहुत बड़ी एक धर्मशाला भी बनवाई। करतारपुर के इसी स्थान पर अश्विन के कृष्ण पक्ष 10, संवत् 1597 (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 22 सितम्बर 1539) को गुरु नानक जी परलोक सिधार गए।

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गुरूद्वारा करतारपुर साहिब (पाकिस्तान)


मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था जो बाद में गुरु अंगद देव जी के नाम से जाने गए।

गुरु नानक जी के कविताएं एवं रचनाएं

गुरु नानक भक्तिकाल के अतंर्गत निर्गुण धारा एक अच्छे कवि के साथ ही अच्छे सूफी कविताएं भी किया करते थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से बसकर जो अभिव्यक्ति व्यक्त की है, वह बहुत ही निराली है। गुरु नानक जी की भाषा "बहता नीर" की तरह थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए।

गुरु नानक देव जी के 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, Sidh Gohst, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, Patti, बारह मास गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं।‌

गुरु नानक से संबंधित गुरुद्वारे और प्रमुख स्थान

गुरुद्वारा कन्ध साहिब

गुरुद्वारा कन्ध साहिब बटाला (गुरुदासपुर) में स्थित है यहां गुरु नानक का बीबी सुलक्षणा से 16 वर्ष की उम्र में 1544 संवत्‌ की 24वीं जेठ को विवाह सम्पन्न हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन किया जाता है।

गुरुद्वारा हाट साहिब

गुरुद्वारा हाट साहिब सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में गुरुनानक ने अपने बहनोई जैराम के सहायता से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भण्डार के देखरेख के लिए नौकरी की थी। नानक जी यहाँ पर मोदी बना दिए गए। वहां के नवाब युवा नानक जी से काफी प्रभावित थे। यहीं से गुरु नानक जी को 'तेरा' शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।

गुरुद्वारा गुरु का बाग सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला)

यह गुरु नानक जी का घर था,जहाँ पर उनके दोनों पुत्र बाबा श्रीचन्द और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।

गुरुद्वारा कोठी साहिब सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला)

यहां पर नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानक जी को जेल मे डाल दिया था। लेकिन जब नवाब को अपनी गलतियों का पता चला तो उसने तुरंत ही नानक जी को छोड़ कर माफी ही माँगी और प्रधानमन्त्री बनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन गुरु नानक ने प्रधानमंत्री का प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

गुरुद्वारा बेर साहिब सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला)

जब एक बार गुरु नानक जी अपने साथी मर्दाना जी के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे और अचानक नदी में डुबकी लगा दी, उसके बाद नानक जी तीन दिनों तक लापता हो गए, कहा जाता है कि यहाँ पर ही नानकदेव जी का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ मान रहे थे, लेकिन वे तीन दिन बाद वापस लौटे और कहा- एक ओंकार सतनाम। गुरु नानक जी ने उसी स्थान पर एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।

गुरुद्वारा अचल साहिब गुरुदासपुर

अपनी यात्राओं के दौरान गुरु नानकदेव यहाँ पर रुके थे और नाथपन्थीयों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद हुआ था। योगी भांगर नाथ सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे थे तब गुरु नानक जी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ऐसा बताया।

गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक गुरुदासपुर (करतारपुर)

अपने जीवनभर के धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद गुरु नानकदेव जी रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर डेरा जमाया था और 70 वर्ष की परम साधना के बाद सन्‌ 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।

करतारपुर कॉरिडोर

9 नवम्बर, 2019 (शनिवार) के दिन गुरु नानकदेव जी, जन्म के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक चेकपोस्ट से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब या गुरुद्वारा दरबार साहिब को जोड़ने वाले 4.5 किलोमीटर लम्बे गलियारे के जरिये लगभग 500 तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे को हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।‌ गुरद्वारा करतारपुर साहिब गुरु नानक जी के समाधि स्थल पर ही बना हुआ है। ‌‌

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