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जय श्री राम: अल्पसंख्यकों को डराने के लिए सांप्रदायिक नारा

प्रशांत भूषण वकील

जय श्री राम का नारा अब भगवान राम का अभिवादन नहीं, अल्पसंख्यकों को डराने के लिए सांप्रदायिक नारा- प्रशांत भूषण

हिंदुत्व ब्रिगेड द्वारा लगाया गया जय श्री राम का नारा अब भगवान राम का अभिवादन नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यकों को डराने के लिए एक सांप्रदायिक युद्ध का नारा है।

जय श्री राम : हिंदू मंत्र जो बन गया एक सांप्रदायिक नारा

भारत के कई हिस्सों में, हिंदू अक्सर लोकप्रिय भगवान राम का नाम अभिवादन के रूप में लेते रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में, कुछ हिंदूत्ववादी लोग इसे लिंचिंग, सांप्रदायिक रंग देने और अल्पसंख्यक वर्ग को चिढ़ाने/डराने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की चिंता

माननीय सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदुत्ववादी लोगों द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे जोर जबरदस्ती पर अपनी विचार रखते हुए अंग्रेजी में ट्वीट किया जिसका हिन्दी रूपांतरण है:

हिंदुत्व ब्रिगेड द्वारा लगाया गया जय श्री राम का नारा अब भगवान राम का अभिवादन नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यकों को डराने के लिए एक सांप्रदायिक युद्ध का नारा है।

जय श्री राम के नारे का इस्तेमाल सिर्फ अल्पसंख्यकों के खिलाफ

देश में भाजपा की सरकार बनने के बाद देशभर में हिंदुत्ववादी संगठन द्वारा जय श्री राम के नारों का इस्तेमाल धार्मिक कार्यक्रम में न कर लोगों को उकसाने और सांप्रदायिक रंग देने के लिए ज्यादा किया जा रहा है। अब जय श्री राम का नारा क्लास रूम तक पहुंच गया है, लोग एक दूसरे के धर्म पर खुलेआम छींटाकशी कर रहे हैं। देश में कानून का मजाक बनाया जा रहा है।

नारेबाजी और गाली-गलौज अब भीड़ और सड़कों तक ही सीमित नहीं है। चिंता की बात यह है कि यह सब अब स्कूल कॉलेज में भी प्रवेश कर चुकी है।

मध्य प्रदेश के कॉलेज में भी यह मामला देखने को मिला है जिसमें हिंदुत्ववादी संगठन के लोग कॉलेज के अंदर घुस कर हिजाब पहने लड़कियों को देख कर जय श्रीराम के नारे लगाए। इस मामले के बाद प्रिंसिपल नेम स्कूल में ही हिजाब पर पाबंदी लगा दी है।

कर्नाटक में चल रहे हिजाब मामले में भी जय श्री राम के नारों के साथ हिजाब का विरोध किया जा रहा है तथा भगवा गमछो के साथ अल्पसंख्यकों को उकसाया जा रहा है। सोशल मीडिया में अनेकों ऐसे वायरल वीडियो है जिसमें हिन्दुतवादी छात्र भगवा गमछा पहने स्कूल में प्रवेश कर रहे हैं तथा जय श्री राम के नारे लगा रहे हैं।

विपक्षी नेताओं का विरोध

अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले की विपक्षी नेताओं ने निंदा की है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी तथा कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिजाब बैन के खिलाफ आवाज उठाते हुए विरोध जताया है।

कार्टूनिस्ट, सोशल एक्टिविस्ट सहित कई आलोचकों ने भी ऐसी घटनाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की है। भारत में चल रहे इस घटनाक्रम पर विदेशों में भी चिंता जताई जा रही है। अमेरिकी राजदूत (अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता) ने हिजाब बैन का विरोध करते हुए ट्वीट किया था।

जय श्री राम के नारे की शुरुआत कब हुई?

"जय श्री राम" अब हमले की पुकार में बदल गया है, जिसका मतलब अलग-अलग पूजा करने वालों को डराना और धमकाना है।

अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन के दौरान हिंदू जनता को लामबंद करने के लिए भाजपा द्वारा 1980 के दशक के अंत में पहली बार एक राजनीतिक मंत्र के रूप में जय श्री राम के नारे का इस्तेमाल किया गया था।

पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर के निर्माण के समर्थन में एक मार्च शुरू किया और दिसंबर 1992 में "जय श्री राम" के नारे लगाते हुए भीड़ ने उत्तरी शहर में मार्च किया और 16 वीं शताब्दी की बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया।

अभियान ने हिंदू मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में प्रेरित किया और राम को व्यक्तिगत से राजनीतिक में बदलने में मदद की। तब से, पार्टी ने चुनावों के दौरान लगातार श्री राम के नारे का आह्वान किया है और 2019 के चुनाव कोई अपवाद नहीं थे। हर चुनाव में इसका जमकर इस्तेमाल किया जाता है और हिंदू वोटर को ध्रुवीकरण करने के लिए अल्पसंख्यकों को उकसाया जाता है।

प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी

नरेंद्र मोदी के सत्ता में पहले कार्यकाल को अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा द्वारा चिह्नित किया गया था। मुसलमानों पर तथाकथित "गौ रक्षकों" द्वारा उन अफवाहों पर हमला किए जाने की कई घटनाएं हुई हैं कि उन्होंने गोमांस खाया था, या कि वे गायों की तस्करी करने की कोशिश कर रहे थे।

प्रधान मंत्री ने इस तरह के हमलों की निंदा नहीं की, लेकिन उनकी जल्दी या दृढ़ता से निंदा न करने के लिए आलोचना की गई। आज भी प्रधानमंत्री मोदी चुप्पी बनाए हुए हैं, देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हो रही है लेकिन भाजपा के नेता चुप।

देश की जनता भाजपा की इस नीति को समझने लगी है और एकजुट होकर इनका बहिष्कार भी करने लगी है। पांच राज्यों में चल रही चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा। जनता नफरती ताकतों को सबक सिखाने के लिए एकजुट होकर मतदान करने की सोच रही है।

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