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भारत के पिछड़ेपन के मुख्य कारण: धार्मिक कट्टरता और जातिवाद

भारत के पिछड़ेपन के मुख्य कारण: धार्मिक कट्टरता और जातिवाद

धार्मिक कट्टरता और जातिवाद: भारत के आर्थिक पिछड़ेपन का मुख्य कारण

आज के इस लेख में भारत में धार्मिक कट्टरवाद से होने वाले नुकसान पर प्रकाश डालने जा रहे हैं।‌‌ भारत को पिछले 3000 सालों से धीरे धीरे खोखला किया जा रहा है। धर्म के ठेकेदार अपने फायदे के हिसाब से धर्म की परिभाषा बदलकर जनता लूटते आ रहे हैं।

अगर आप इतिहास के पन्नो को पलटते हुए कई हजार साल पीछे जायेंगे तो पाएंगे की भारत विश्व में सर्वश्रेष्ठ तथा हर क्षेत्र में पहले नंबर पर था। भारत में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, आर्यभट, नागार्जुन और कौटिल्य जैसे विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी थे। विश्व के हर कोने से लोग भारत में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। भारत गणित, आयुर्वेद चिकित्सा और खगोल और रसायन विज्ञानं में नंबर एक पर था। पौराणिक काल की कलाकृतियों को देखने से पता चलता है की भारत आर्किटेक्ट और भवन निर्माण में भी अव्वल था।


भारत पिछड़ेपन के क्या कारण है?

बौद्ध धर्म के आने से पहले देश काफी प्रगति पर था. महात्मा बुद्ध ने भी भगवान् को नकार दिया था, उन्होंने कहा था की कोई भगवन नहीं है। लेकिन बुद्ध के मरने के बाद लोगो ने बुद्ध के उपदेशो और विचारों को धर्म में परिवर्तित कर दिया‌।

धार्मिक कट्टरता की शुरुआत प्राचीन काल से ही हुई थी। प्राचीन पाठ अशोकवदान, दिव्यावदान का एक हिस्सा, पुंड्रवर्धन में एक गैर-बौद्ध का उल्लेख किया हैं, जिसमें बुद्ध को निर्ग्रन्थ ज्ञानिपुत्र (जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर के साथ पहचाने जाने वाले) के चरणों में झुकते हुए दिखाया गया था। एक बौद्ध भक्त की शिकायत पर, मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया, और बाद में, पुंड्रवर्धन में सभी आजीविकों को मारने का एक और आदेश जारी किया। इस आदेश के परिणामस्वरूप अजीविका संप्रदाय के लगभग 18,000 अनुयायियों को मार डाला गया था। कुछ समय बाद, पाटलिपुत्र में एक अन्य निर्ग्रन्थ अनुयायी ने इसी तरह की तस्वीर बनाई। अशोक ने उन्हें और उनके पूरे परिवार को अपने घर में जिंदा जला दिया। उन्होंने एक निर्ग्रन्थ के सिर के लिए एक दिनारा (चाँदी का सिक्का) देने की भी घोषणा की। अशोकवदान के अनुसार, इस आदेश के परिणामस्वरूप, उनके अपने भाई, विताशोक को गलती से एक विधर्मी समझ लिया गया था और एक चरवाहे द्वारा मार दिया गया था। उनके मंत्रियों ने सलाह दी कि "यह उस पीड़ा का एक उदाहरण है जो उन लोगों पर भी लागू हो रही है जो इच्छा से मुक्त हैं" और उन्हें "सभी प्राणियों की सुरक्षा की गारंटी देनी चाहिए"। इसके बाद अशोक ने फाँसी का आदेश देना बंद कर दिया। के.टी.एस. सराओ और बेनीमाधब बरुआ के अनुसार, अशोक द्वारा प्रतिद्वंद्वी संप्रदायों के उत्पीड़न की कहानियां सांप्रदायिक प्रचार से उत्पन्न एक स्पष्ट निर्माण प्रतीत होती हैं।


धार्मिक कट्टरवाद की शुरुआत

दिव्यावदान (दैवीय कहानियाँ), नैतिकता और नैतिकता पर बौद्ध पौराणिक कथाओं का एक संकलन, जिसमें कई बात करने वाले पक्षियों और जानवरों का उपयोग किया गया था, लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी में लिखा गया था। एक कहानी में पुष्यमित्र के साथ स्तूपों और विहारों को तोड़े जाने का उल्लेख मिलता है। दिव्यावदान लिखे जाने से लगभग 400 साल पहले इसे शुंग साम्राज्य के राजा पुष्यमित्र के शासनकाल में ऐतिहासिक रूप से मैप किया गया था। देवकोथर में स्तूपों के पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं जो जानबूझकर विनाश का सुझाव देते हैं, पुष्यमित्र के बारे में दिव्यावदान में वर्णित होने का अनुमान है। यह स्पष्ट नहीं है कि देवकोथर स्तूप कब और किसके द्वारा नष्ट किए गए थे। दिव्यावदान की काल्पनिक कहानियों को विद्वानों द्वारा एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड के रूप में संदिग्ध मूल्य के रूप में माना जाता है। उदाहरण के लिए मोरिज़ विंटरनिट्ज़ ने कहा, "इन किंवदंतियों में शायद ही कोई ऐतिहासिक मूल्य हो"। 

बौद्ध ग्रंथों में कहा गया है कि पुष्यमित्र ने बौद्धों पर क्रूरता से अत्याचार किया। इसका उल्लेख करने वाला सबसे पहला स्रोत दूसरी शताब्दी सीई का पाठ अशोकवदन (दिव्यावदान का एक हिस्सा) है। इस पाठ के अनुसार, पुष्यमित्र  प्रसिद्ध होना चाहता था। उनके मंत्रियों ने उन्हें सलाह दी कि जब तक बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म बना रहेगा, तब तक वह अपने पूर्वज अशोक के रूप में कभी प्रसिद्ध नहीं होंगे, जिन्होंने 84,000 स्तूपों का निर्माण किया था। एक सलाहकार ने उसे बताया कि वह बौद्ध धर्म को नष्ट करके प्रसिद्ध हो सकता है। पुष्यमित्र ने तब कुक्कुटाराम मठ को नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन यह एक चमत्कार से बच गया। इसके बाद वे उत्तर-पश्चिम में शाकला गए, जहां उन्होंने बौद्ध भिक्षु के प्रत्येक सिर के लिए एक सौ रोमन डेनेरी (सिक्के) का पुरस्कार दिया। इसके बाद, वह कोष्टक साम्राज्य के लिए रवाना हुए, जहां दमष्ट्रानिवासिन नाम के एक बौद्ध यक्ष ने उन्हें और उनकी सेना को क्रिमिशा नामक एक अन्य यक्ष की मदद से मार डाला।


धार्मिक प्रतिस्पर्धा

पहले जैन फिर बौद्ध और बाद में ईसाई और इस्लाम धर्म, सभी धर्मो के लोगों में प्रतिस्पर्धा की शरुआत हो गई। सबके सब अपने धर्मो को ऊचा दिखाने के लिए एक दूसरे के खिलाफ नफरत का माहौल बनाया। धूर्त राजाओं और अराजक तत्वों ने इस नफरत के माहौल का बखूबी इस्तेमाल किया और सत्ता पर काबिज हो गए। उन राजाओं ने देश के विकास की जगह विलासिता को चुना, राजकोष को भरने के लिए दूसरे राज्यों पर आक्रमण किया और लूटपाट किया। आज भी लोग अपने अपने धर्म को ऊंचा दिखाने के लिए दूसरे धर्म की आलोचना करते हैं और दूसरे धर्म के लोगों से नफरत करते हैं। उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं या मारकाट करते हैं। इन धार्मिक प्रतिस्पर्धा के कारण अराजक तत्व सक्रिय हो जाते हैं और समाज को लूटते हैं। चोर, लुटेरे, काले धंधे वाले का और क्रिमिनल प्रवृत्ति के लोग धार्मिक कट्टरवाद का सहारा लेकर अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं और लोगों को लूटते हैं।

इन लूटपाट के कारण भी देश का विनाश का विनाश होता है। समाज के अन्य वर्गों के साथ भेदभाव किया जाता है जिससे उनका विकास रुक जाता है।


आक्रमणकारियों को लूटने के लिए निमंत्रण

इतिहास के अनुसार पृथ्वीराज चौहान से मिली हार का बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। जयचंद जैसे लालची राजाओं के कारण विदेशी आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण कर कब्ज़ा जमा लिया। बाद में मुग़ल शासकों ने भारत पर कब्ज़ा किया। मुगलों को साथ देने वालों में कई राजपूत राजाओं का नाम आता है जिसमे से एक राजा मानसिंह भी था जिसने अपनी बहन जोधा बाई की शादी अकबर से करवा दिया था। राजा मानसिंह अकबर का सेनापति बन महाराणा प्रताप से युद्ध किया और उनकी हत्या का कारण बना। मुगल शासक भी हिंदू राजाओं के साथ हाथ मिलाकर देश में तोड़फोड़ और लूटपाट में शामिल रहे। भारत के धरोहरों को क्षत-विक्षत किया गया और लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया।

बाद के दिनों में मुगल शासनकाल में भारत की अर्थव्यवस्था शिर्ष पर थी क्योंकि जो भी आमदनी होती थी राजाओं के राजकोष में होता था और इस देश में ही रहता था। मुगल शासक कमाए हुए पैसों को भारत से बाहर नहीं भेजते थे। ‌अंग्रेजों को जब भारत की खुशहाली के बारे में पता चला तो उन्होंने भारत को लूटने का प्रोग्राम बनाया। अंग्रजों ने बंगाल के नवाब को विश्वास में लेकर कलकत्ता से अपने व्यापार की शुरुआत की। उन अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं के आपसी फुट का फायदा उठाया और फिर पुरे भारत पर राज करने लगे। अंग्रेजों ने देखा कि भारत में लोग धर्म और जाति के प्रति ज्यादा संवेदनशील है और फिर उन धूर्त अंग्रेजों ने धर्म और जाति के आधार पर लोगो को भड़काया और उनमें फुट डाला। भारतीय कि इन्हीं फूट के कारण अंग्रेजी हुकूमत 200 सालों तक भारत के प्रकितिक संसाधनों को लूटते रहे और अपने इंग्लैंड खजाने को भरते रहे। भारतीय संसाधनों को लूट कर ले जाने के लिए उन लोगों ने भारत से लेकर इंग्लैंड तक रेलवे लाइन बिछाया था। भारतीय खजाना, महंगे खनिज पदार्थ और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को लूटपाट कर इंग्लैंड भेजते रहे। अंग्रेजों के लूटपाट के कारण भारत की अर्थव्यवस्था बिल्कुल चरमरा गई थी। देश और देश की जनता बहुत बिछड़ गई थे।


भारत की स्वतंत्रता और विकास

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों जैसे की महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस,अम्बेडकर और अन्य लोगो ने भारतीय को एकजुट किया और अंग्रेजों से लड़ने के लिए प्रत्साहित किया‌। लोगो ने जाती धर्म भूलकर भारतीय के रूप में अंग्रेजों से मुकाबला किया और देश को स्वंतत्र कराने में कामयाब हुए। स्वतंत्रता के बाद भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक बन गया। स्वतंत्रता प्राप्त करने के 70 से अधिक वर्षों के बाद, भारत एक लंबा सफर तय कर चुका है। हमारे पूर्व के प्रधानमंत्रियों ने लोकतंत्र बनाए रखने के लिए एक अर्थव्यवस्था का निर्माण किया। देश सबसे प्रसिद्ध विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्रों में से एक बन गया है। उन राष्ट्रनिर्माताओं के कारण ही जो भारत देश जिसकी अर्थव्यवस्था आजादी के समय सिर्फ 2.7 लाख करोड़ रुपये थी वो अब 150 लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंच चुकी है। देश ने अंतरिक्ष विज्ञानं, आई आई टी, आल इंडिया मेडिकल साइंस, रेलवे, एयरपोर्ट, सड़क, स्कूल कॉलेज, इस्पात संयंत्र, डैम, पनबिजली और एटॉमिक पावर प्लांट के साथ साथ एटम बम्ब का निर्माण किया है। सबको सामान रूप से शिक्षा, नौकरी और धर्म की स्वतंत्रता का अवसर प्राप्त हुआ।


2014 के बाद का भारत

2014 में सत्ता परिवर्तन के साथ ही अचानक से धार्मिक कट्टरता फ़ैलाने वाले लोग पैदा हो गए। नफरती लोग खुलेआम सार्वजानिक जनसभाओं, टेलीविज़न और सोशल मीडिया पर नफरत का जहर और धार्मिक उन्माद फैला रहे है। लोगो में दर का माहौल है, देश वित्तीय घाटे में है और जनता धर्म का चस्मा पहने हुए अन्धो और गूंगों और बहरों की तरह खामोश है।

धार्मिक संगठन से उत्पन्न हुए और जातिवादी मानसिकता वाले राजनेता सत्ता के शिर्ष पर बैठे हुए हैं। देश के तमाम शीर्ष पदों पर धार्मिक संगठन और जातिवादी मानसिकता वाले लोगों को बैठा दिया गया हैं। इन सब के कारण भी सारे अनैतिक कार्य करने वाले एक विशेष दल में शामिल हो गए और उनका समर्थन करने लगे हैं। देश की धरोहरों का सौदा किया जा रहा है, देश बेचा जा रहा है। पूर्व के प्रधानमंत्रियों द्वारा बनाए हुए संपत्तियों को प्राइवेट हाथों में सौंपा जा रहा है। उद्योगपति बैंकों का पैसा लूट कर भाग रहे हैं। भारतीय पैसों को विदेशों में भेजा जा रहा है। ‌इस तरह से अनैतिक कार्य करने वाले देश को लूट कर विदेशों में अपने साम्राज्य खड़ा कर रहे हैं। चीन भारतीय जमीन पर कब्ज़ा करते जा रहा है, जनता को धर्म और जाति में उलझे हुए हैं।


जनता को आगे आना होगा

स्वतंत्र भारत में धार्मिक हिंसा भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटेन के नियंत्रण के युग के दौरान ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा अपनाई गई फूट डालो और राज करो की नीति की ही विरासत है, जिसमें स्थानीय प्रशासकों ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया, एक रणनीति जो अंततः भारत के विभाजन में परिणत हुआ था।

देश में फिर से 1947 वाली स्थिति बनती जा रही है, धार्मिक कट्टरता के कारण लोग एक दूसरे के खिलाफ होते जा रहे हैं। देश में गृह युद्ध की कगार पर है।

भारत और भारत की जनता खतरें में है, देश का विकास ठप हो चूका है और देश पीछे की और जा रहा है। धर्म और जाति भूलकर अगर हमने खतरे को नहीं पहचाना तो और अधिक नुकशान होने की आशंका है‌। जनता को एकजुट होकर भारतीय के रूप में अराजक तत्वों का विरोध करना चाहिए। देश को नुकसान करने वाले लोगों को पहचान कर उसे पावर बेदखल करना चाहिए। लोकतंत्र में वोट की ताकत सबसे बड़ी ताकत होती है, अपने वोटों का सही इस्तेमाल करते हुए एक सही राष्ट्र निर्माता का चुनाव करना होगा। एक ऐसे राष्ट्र निर्माता जो जनता से भेदभावपूर्ण व्यवहार न करते हुए सबको साथ लेकर देश को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करने में सक्षम हो।


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