मोदी, RSS, सावरकर, गोडसे और BJP: धमाकेदार तथ्य
भारत की राजनीति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), भारतीय जनता पार्टी (BJP), विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम गोडसे और नरेंद्र मोदी का नाम एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। इन सबको लेकर इतिहास में कई रोचक और चौंकाने वाले तथ्य छिपे हैं। कुछ तथ्यों को नजरअंदाज किया जाता है, कुछ को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है, और कुछ पर खुलकर चर्चा ही नहीं होती। आइए इनसे जुड़े कुछ ऐसे ही धमाकेदार तथ्यों पर नज़र डालते हैं।
1. क्या सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी?
विनायक दामोदर सावरकर को कई लोग कट्टर राष्ट्रवादी मानते हैं, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि उन्होंने अंग्रेज़ों से छह बार माफी मांगी थी। काला पानी (अंडमान की जेल) में रहते हुए उन्होंने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि अगर उन्हें रिहा कर दिया जाए, तो वे अंग्रेजों की सेवा करेंगे और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कोई गतिविधि नहीं करेंगे।
सावरकर ने 1913 में अंग्रेज़ों को लिखे पत्र में लिखा:
"मुझे अपनी गलतियों का अहसास हो गया है। कृपया मुझे रिहा कर दिया जाए, मैं आपकी सेवा में रहूंगा।"
मजेदार बात यह है कि आज BJP और RSS उन्हें वीर सावरकर कहकर महिमामंडित करती है, जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह ने कभी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी थी।
2. गोडसे का RSS और हिंदू महासभा से संबंध
नाथूराम गोडसे, जिसने महात्मा गांधी की हत्या की थी, RSS और हिंदू महासभा का सक्रिय सदस्य था। हालांकि, गांधी की हत्या के बाद RSS ने खुद को गोडसे से अलग बताने की कोशिश की, लेकिन कई ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि वह लंबे समय तक RSS से जुड़ा रहा था।
गोडसे ने खुद कहा था:
"मैं बचपन से ही RSS से जुड़ा था और हिंदू राष्ट्र की विचारधारा को मानता था।"
गोडसे ने गांधी जी को इसलिए मारा क्योंकि उन्हें लगता था कि वे हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्ष में थे, लेकिन सच्चाई यह है कि गांधी जी हमेशा सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए खड़े रहे।
3. क्या RSS ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था?
RSS को आज देशभक्त संगठन के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन एक भी प्रमाण ऐसा नहीं है जो दिखाता हो कि RSS ने स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका निभाई थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय, जब पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा था, RSS ने खुद को इस आंदोलन से अलग रखा।
गोलवलकर, जो उस समय RSS के प्रमुख थे, ने कहा था:
"हमारा लक्ष्य सिर्फ हिंदू समाज को संगठित करना है, हम राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे।"
मतलब साफ है – जब पूरा देश आजादी के लिए लड़ रहा था, तब RSS सिर्फ हिंदू संगठन बनाने में व्यस्त था।
4. गांधी की हत्या के बाद RSS पर प्रतिबंध क्यों लगा?
महात्मा गांधी की हत्या के बाद, सरकार ने RSS पर फरवरी 1948 में प्रतिबंध लगा दिया। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने कहा था कि RSS की विचारधारा और गतिविधियां देश के लिए खतरनाक हैं।
सरदार पटेल ने लिखा:
"गांधीजी की हत्या के लिए हिंदू महासभा और RSS की सांप्रदायिक विचारधारा जिम्मेदार है।"
RSS ने इस प्रतिबंध को हटाने के लिए नेहरू सरकार से माफी मांगी और वादा किया कि वह भविष्य में राजनीति से दूर रहेगा। लेकिन आज BJP और RSS न सिर्फ राजनीति में हैं बल्कि देश पर शासन भी कर रहे हैं।
5. नरेंद्र मोदी और 2002 गुजरात दंगे
नरेंद्र मोदी, जो आज देश के प्रधानमंत्री हैं, 2002 के गुजरात दंगों के समय मुख्यमंत्री थे। इन दंगों में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम थे।
2005 में अमेरिका ने मोदी को वीजा देने से मना कर दिया था, क्योंकि उनके ऊपर मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप थे। मोदी ऐसे पहले भारतीय मुख्यमंत्री थे जिन पर यह बैन लगाया गया था।
हालांकि, बाद में जब वे प्रधानमंत्री बने, तो अंतरराष्ट्रीय दबाव में यह प्रतिबंध हटा लिया गया।
6. बीजेपी और चुनावी लाभ के लिए सांप्रदायिकता
- BJP का इतिहास रहा है कि जब भी चुनाव आते हैं, सांप्रदायिक मुद्दों को उछाला जाता है।
- 1992 में बाबरी मस्जिद गिराई गई, जिसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए।
- 2014 और 2019 के चुनावों में पाकिस्तान विरोधी बयान और हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर फोकस किया गया।
- CAA और NRC जैसे कानून लाकर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया।
- मॉब लिंचिंग और ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों को हवा देकर समाज में बंटवारा किया गया।
- BJP का फॉर्मूला सीधा है – चुनाव के समय हिंदू-मुस्लिम को लड़वाओ और वोट बटोर लो।
निष्कर्ष
RSS, BJP, सावरकर, गोडसे और मोदी – इन सभी का इतिहास विवादों से भरा पड़ा है। जहां सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी, वहीं RSS स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहा। गोडसे ने गांधी को मारा, लेकिन RSS ने उससे पल्ला झाड़ लिया। मोदी के समय गुजरात दंगे हुए, लेकिन वे खुद को हिंदू हृदय सम्राट के रूप में पेश करते हैं।
BJP की राजनीति हमेशा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर टिकी रही है, और आज भी यही हो रहा है। लेकिन सवाल यह है – क्या भारत वाकई इस नफरत की राजनीति से आगे बढ़ पाएगा?
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