क्या राजा जयसिंह ने शिवाजी के साथ छल किया था?
भारतीय इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज और मिर्ज़ा राजा जयसिंह प्रथम के बीच का संबंध एक जटिल और बहुस्तरीय विषय है। क्या जयसिंह ने शिवाजी के साथ विश्वासघात किया था, या यह सिर्फ एक राजनीतिक रणनीति थी? इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए हमें ऐतिहासिक घटनाओं पर गहराई से विचार करना होगा।
पुरंदर की संधि: राजनीति और कूटनीति का मिश्रण
1665 में, जब मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत में शिवाजी की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए अभियान चलाया, तो उन्होंने अपने अनुभवी सेनापति मिर्ज़ा राजा जयसिंह को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी। जयसिंह ने रणनीतिक रूप से पुरंदर के किले को घेर लिया, जिससे शिवाजी को संधि के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस संधि के तहत:
- शिवाजी को 23 किले मुगलों को सौंपने पड़े।
- उन्हें मुगल अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
- उनके बेटे संभाजी को मुगलों के दरबार में भेजा गया।
- शिवाजी को स्वयं आगरा दरबार में उपस्थित होने का वचन देना पड़ा।
इस संधि को देखने पर स्पष्ट होता है कि यह जयसिंह की सैन्य और कूटनीतिक क्षमता का प्रमाण थी। लेकिन यह घटनाएँ आगे चलकर एक बड़े विवाद का कारण बनीं।
आगरा यात्रा: छल या परिस्थिति का खेल?
संधि के अनुसार, शिवाजी को 1666 में मुगल दरबार में उपस्थित होना पड़ा। जयसिंह ने उन्हें औरंगज़ेब से मिलने के लिए प्रेरित किया और यह विश्वास दिलाया कि इस यात्रा से मराठा-मुगल संबंधों में सुधार होगा।
लेकिन आगरा पहुँचते ही हालात बदल गए। शिवाजी को उचित सम्मान नहीं दिया गया और अंततः उन्हें बंदी बना लिया गया।
अब सवाल उठता है—क्या जयसिंह इस साजिश से पहले से अवगत थे?
- कुछ इतिहासकार मानते हैं कि जयसिंह की मंशा शिवाजी और मुगलों के बीच समझौता करवाने की थी।
- अन्य लोग इसे एक सोची-समझी चाल मानते हैं, जहाँ जयसिंह ने जानबूझकर शिवाजी को औरंगज़ेब के जाल में फँसाया।
हालांकि, कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि जयसिंह ने शिवाजी के साथ जानबूझकर धोखा किया था।
शिवाजी की चतुराई: कैद से शानदार पलायन
कैद के दौरान, शिवाजी ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए एक रणनीति बनाई और अंततः फल-टोकरों के भीतर छिपकर आगरा से भागने में सफल रहे।
इस दौरान, जयसिंह के बेटे रामसिंह की भूमिका भी चर्चा में आई। कुछ लोगों का मानना है कि रामसिंह ने शिवाजी को भागने में सहायता की थी। हालांकि, इस पर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन यह निश्चित है कि शिवाजी की मुगलों से बच निकलने की यह घटना भारतीय इतिहास के सबसे रोमांचक प्रसंगों में से एक है।
राजपूत-मुगल गठजोड़: एक व्यापक परिप्रेक्ष्य
मिर्ज़ा राजा जयसिंह अकेले ऐसे राजपूत शासक नहीं थे जिन्होंने मुगलों के साथ गठबंधन किया था। कई अन्य राजपूत राजाओं ने भी अपनी रियासतों की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए मुगलों के साथ संबंध बनाए।
- काठियावाड़ी राजपूतों ने कई मौकों पर मुगलों का साथ दिया।
- जयपुर और अन्य राजपूत राज्यों के शासकों ने भी मुगलों से वैवाहिक और सैन्य गठबंधन बनाए।
- जयसिंह स्वयं एक कुशल सेनापति और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने मुगलों के साथ मिलकर कई लड़ाइयाँ लड़ीं।
इसलिए, यह कहना मुश्किल होगा कि जयसिंह की नीयत केवल शिवाजी के खिलाफ थी—बल्कि यह उनके व्यापक राजनीतिक दृष्टिकोण का हिस्सा था।
क्या जयसिंह ने शिवाजी के साथ विश्वासघात किया?
इस विषय पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं:
- धोखा: कुछ मराठा इतिहासकार मानते हैं कि जयसिंह को औरंगज़ेब की योजना का अंदाजा था और उन्होंने शिवाजी को आगरा भेजकर उनके साथ छल किया।
- राजनीतिक मजबूरी: दूसरी ओर, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि जयसिंह को औरंगज़ेब के आदेशों का पालन करना पड़ा और वे शिवाजी को किसी भी तरह से बचाने में असमर्थ थे।
जो भी हो, यह स्पष्ट है कि जयसिंह ने मुगलों के प्रति अपनी निष्ठा निभाई, लेकिन शिवाजी ने अपनी चतुराई से परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लिया।
निष्कर्ष: छल या परिस्थिति का खेल?
मिर्ज़ा राजा जयसिंह और छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच की यह कहानी न केवल इतिहास का एक रोचक अध्याय है, बल्कि यह सत्ता, रणनीति और कूटनीति का भी शानदार उदाहरण है।
.क्या यह सच में विश्वासघात था, या फिर यह समय की माँग थी?
इस पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट में ज़रूर बताइए और इस ऐतिहासिक बहस में अपनी राय साझा करें!
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