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भारत को बचाने की जंग: आरएसएस-भाजपा की अराजक राजनीति से मुक्ति की रणनीति

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भारत को बचाने की जंग: आरएसएस-भाजपा की अराजक राजनीति से मुक्ति की रणनीति


लोकतंत्र के लिए निर्णायक समय

2014 के बाद भारतीय राजनीति ने एक गहरे मोड़ पर कदम रखा है। आरएसएस की सोच और भाजपा के नेतृत्व में एक ऐसी सत्ता उभरी है जिसने लोकतंत्र, सामाजिक सौहार्द और संवैधानिक संस्थाओं को कमज़ोर किया है। सरकार की प्राथमिकता विकास न होकर सिर्फ छवि और सत्ता का विस्तार बन गई है।

महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक तनाव, किसान संकट, युवाओं का शोषण, और देश की गिरती अंतरराष्ट्रीय साख—ये सभी संकेत हैं कि भारत की आत्मा खतरे में है। ऐसे दौर में जरूरी है कि विपक्ष और आम जनता मिलकर एकजुट हों और इस अराजकता को समाप्त करें।


किन वोटर्स को भाजपा की गिरफ़्त से बाहर लाया जा सकता है?

भाजपा का एक स्थायी वोट बैंक मौजूद है, विशेषकर उच्च जातियों में, लेकिन बहुसंख्यक भारतीय आबादी भाजपा की नीतियों से परेशान है। उन्हें सही रणनीति और नेतृत्व से जोड़ना संभव है।

मुसलमान:

  • दशकों से हाशिये पर रखा गया यह समुदाय अब और चुप नहीं रह सकता। 100% मतदान और संगठित रणनीति से यह निर्णायक शक्ति बन सकता है।

यादव:

  • यूपी और बिहार में राजनीतिक चेतना और संगठन की ताकत है। सपा और राजद के माध्यम से इस शक्ति को दिशा देने की आवश्यकता है।

कुर्मी और अन्य पिछड़ा वर्ग:

  • यह वर्ग भाजपा से नाराज़ है, लेकिन अभी भी भ्रमित है। इनकी सामाजिक और आर्थिक चिंता को केंद्र में लाकर जोड़ा जा सकता है।

जाटव और अन्य दलित जातियाँ:

  • नए नेतृत्व और उम्मीद की तलाश कर रहे हैं। इनका संगठित होना भाजपा की रणनीति को ध्वस्त कर सकता है।

आदिवासी:

  • जिनके जल-जंगल-जमीन पर हमले हुए हैं, उन्हें उनकी हकीकत बतानी होगी। झारखंड, छत्तीसगढ़, एमपी और ओडिशा में निर्णायक मतदाता हैं।

किसान और ग्रामीण गरीब:

  • आंदोलन ने सरकार की पोल खोल दी है। अगर गांव-गांव में सच्चाई पहुंचाई जाए, तो यह वर्ग भाजपा से पूरी तरह अलग हो सकता है।

बेरोजगार युवा:

  • अग्निवीर योजना और सरकारी नौकरियों में कटौती ने युवाओं की उम्मीदें तोड़ी हैं। इन्हें बदलाव के लिए प्रेरित करना होगा।



मोदी-आरएसएस शासन से मुक्ति की रणनीति

1. विपक्ष का सशक्त और समर्पित नेतृत्व

  • व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा छोड़कर साझा उद्देश्य के लिए एक मंच बनाना होगा।
  • राहुल गांधी, ममता बनर्जी, केजरीवाल, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव जैसे नेताओं को समन्वय बनाना होगा।
  • प्रधानमंत्री पद के लिए ऐसा चेहरा चुनना होगा, जिसे पूरे देश में विश्वास के साथ देखा जाए।

2. 'हिंदू-मुस्लिम' की राजनीति का जवाब 'रोज़गार-शिक्षा-स्वास्थ्य' से

  • आरएसएस-भाजपा भावनात्मक मुद्दों से वोट बैंक बनाते हैं।
  • जवाब देना होगा कि देश का युवा भूखा है, किसान टूट चुका है, और जनता त्रस्त है।
  • सिर्फ नफरत नहीं, अब रोटी की बात होगी।

3. सोशल मीडिया और ज़मीनी अभियान का तालमेल

  • भाजपा का IT सेल जनता को भ्रमित करता है, उसका मुकाबला तथ्य और सच्चाई से करना होगा।
  • बूथ लेवल से लेकर डिजिटल स्पेस तक – हर मोर्चे पर लड़ाई लड़नी होगी।

4. सीट बंटवारे में समझदारी और गठबंधन में ईमानदारी

  • यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, बंगाल, केरल जैसे राज्यों में एकजुट विपक्ष ही जीत दिला सकता है।
  • गठबंधन में सम्मान और पारदर्शिता के साथ काम करना होगा।

5. भाजपा की विफलताओं को उजागर करना

  • मणिपुर हिंसा, अग्निवीर योजना, नोटबंदी, जीएसटी, कृषि कानूनों, मीडिया की आज़ादी पर हमला – ये सब मुद्दे हैं जिन पर भाजपा की पोल खोलनी होगी।


अराजक तत्वों से मुक्ति कैसे मिलेगी?

कानून का शासन बहाल करना होगा।

  • हर जगह डर का माहौल बना दिया गया है—संविधान की ताकत से ही डर को हराया जा सकता है।
न्यायपालिका, मीडिया और शिक्षा संस्थानों की आज़ादी बहाल करनी होगी।
  • ये संस्थान लोकतंत्र की रीढ़ हैं, जिन्हें फिर से स्वतंत्र बनाना होगा।
सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना होगा।
  • जाति और धर्म के नाम पर बंटे समाज को फिर से जोड़ना होगा—"हम भारत के लोग" की भावना से।

निष्कर्ष: अब नहीं तो कभी नहीं

भारत एक गंभीर संकट में है। सरकार की प्राथमिकता सिर्फ सत्ता में बने रहना है, चाहे इसके लिए संविधान ही क्यों न कुचलना पड़े। युवाओं का भविष्य दांव पर है, देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिर रही है, और सामाजिक ताना-बाना टूट रहा है।

यह समय है—आरएसएस-भाजपा की अराजकता के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का।
यह समय है—लोकतंत्र, समानता और न्याय को पुनः स्थापित करने का।

एकजुट होइए, जागरूक बनिए और भारत को फिर से संवैधानिक रास्ते पर ले जाइए।
क्योंकि अगर अब भी चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।


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