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सबसे बड़ा गुंडा कब तक टिकता है? प्रभाकरण से हिटलर तक के सबूत

Prabhakaran | hitter | Mafia

सबसे बड़ा गुंडा का अंत बहुत ही दर्दनाक होता है | प्रभाकरण से हिटलर तक की सच्चाई

इतिहास गवाह है कि चाहे प्रभाकरण हो, वीरप्पन हो, पाब्लो एस्कोबार हो, विकास दुबे हो या हिटलरहरसबसे बड़ा गुंडाशासन और प्रशासन के संरक्षण तक ही जिंदा रहता है।
जैसे ही राज्य की इच्छाशक्ति और जनता का मूड बदलता है, इनका अंत बेहद दर्दनाक होता है।
यह ब्लॉग आपको बताता है कि क्यों गुंडागर्दी, सत्ता और संवैधानिक पद अस्थायी हैं, और असली स्थायित्व सिर्फ़ कानून, न्याय और जनता की ताक़त में है।

 कोई भीबड़ा गुंडाया अपराधी तब तक जिंदा रह सकता है, जब तक उसे किसी किसी स्तर पर सुरक्षा कवचप्रशासन, राजनीति या शासन की शिथिलतामिलता है। जैसे ही राज्य की इच्छाशक्ति जागती है और जनता का मूड बदलता है, सबसे ताक़तवर गुंडे और उनके परिवार भी ढह जाते हैं।


केसस्टडी 1: वेलुपिल्लै प्रभाकरण (LTTE) — “नॉन-स्टेट पावरका अंत

श्रीलंका में LTTE ने दशकों तक समानांतर सत्ता जैसा आतंक फैलाया। लेकिन 2008–09 में कोलंबो ने खुफिया, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सैन्य संसाधनों काफ़ाइनल पुशचलाया, तो LTTE ध्वस्त हो गया।
18 मई 2009 को प्रभाकरण की मौत की घोषणा हुई और टीवी पर शव तक दिखाया गया।

परिवार का हश्र: प्रभाकरण का बड़ा बेटा चार्ल्स एंथनी मारा गया, छोटे बेटे बालचंद्रन की मौत पर विवाद रहा। पत्नी मथिवथानी और बेटी दुवारका भी अंतिम संघर्ष में मारी गईं या लापता हो गईं। यह उदाहरण बताता है कि जब शासन का संरक्षण खत्म होता है, तो परिवार तक नहीं बच पाता।


केसस्टडी 2: वीरप्पनजंगल काराजाभी ऑपरेशन ककून से बाहर नहीं निकल सका

दक्षिण भारत का कुख्यात दस्यु वीरप्पन दशकों तक सीमाई जंगलों में समानांतर हुकूमत जैसा दबदबा रखता था।
लेकिन 2004 में Operation Cocoon में STF ने उसे मार गिराया।
यह साबित करता है कि चाहे भूगोल कितना भी सुरक्षित क्यों हो, राज्य-समन्वय और खुफिया रणनीति अंततःसबसे बड़े डकैतको भी खत्म कर देती है।


केसस्टडी 3: पाब्लो एस्कोबारवैश्विकनार्को-सम्राटका पतन

कोलंबिया का एस्कोबार दुनिया का सबसे ताक़तवर ड्रग-लॉर्ड माना जाता था। पुलिस, राजनीति और समाज पर उसका आतंक था।
लेकिन 1993 में कोलंबियाई पुलिस और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से मेडेलिन में वह मार गिराया गया।
बाद में उसकी सम्पत्ति और प्रतीकों को राज्य ने पुनर्परिभाषित किया ताकिनार्को-ग्लैमरकी विरासत खत्म की जा सके।


केसस्टडी 4: भारत का विकास दुबे प्रकरण

2020 में कानपुर के बिकरू कांड के बाद कुछ ही दिनों में विकास दुबे और उसके कई साथियों की पुलिस मुठभेड़ों में मौत हो गई।
यह दिखाता है कि जब राज्य किसी नेटवर्क को खत्म करने का निश्चय कर ले, तो राजनीतिक/प्रशासनिक छतरियाँ भी बेकार हो जाती हैं।


केसस्टडी 5: एडॉल्फ हिटलरराज्य पर कब्ज़ा, लेकिन अंत में पूर्ण विनाश

हिटलर ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सत्ता पाई और फिर पूरे जर्मनी पर नाज़ी विचारधारा का कब्ज़ा कर लिया। उसने संवैधानिक पद और राज्य मशीनरी का इस्तेमाल करके पूरे यूरोप को युद्ध में झोंक दिया।

लेकिन 1945 आते-आते जब जर्मनी की सैन्य ताक़त टूट गई और मित्र राष्ट्र बर्लिन के करीब पहुँच गए, हिटलर अपने ही बंकर में आत्महत्या करने पर मजबूर हुआ।

परिवार और अनुयायियों का हश्र:

  • पत्नी ईवा ब्राउन ने भी आत्महत्या कर ली।
  • उसके सहयोगी पकड़े गए या मारे गए।
  • नाज़ी नेतृत्व को न्यूरमबर्ग ट्रायल्स में कठोर सजाएँ दी गईं।
  • उसके अनुयायी और समर्थक जर्मनी छोड़कर भागने पर मजबूर हुए।

यह उदाहरण बताता है कि चाहे संवैधानिक पद पर बैठकर गुंडागर्दी को वैधता दी जाए, अंत विनाशकारी ही होता है।


पैटर्न क्या बताता है?

  1. अनौपचारिक संरक्षण = लंबी उम्र
    जब तक प्रशासनिक शिथिलता या राजनीतिक कवच है, गुंडागर्दी फलती-फूलती है।
  2. राज्य-निष्ठा और समन्वय = पतन का ट्रिगर
    एक बार राज्य ठान ले, तो इंटेलिजेंस, फंडिंग रोक, और सैन्य/पुलिस दबाव मिलकर साम्राज्य तोड़ देते हैं।
  3. मानवाधिकार और जवाबदेही
    कई बार अंतिम चरण में अत्यधिक बल-प्रयोग और दुराचार के आरोप उठते हैं, जैसे श्रीलंका का 2009 फ़ाइनल फेज़।
    इसलिए ज़रूरी है कि कानून और जवाबदेही के साथ ही सफ़ाई की जाए।

जबगुंडासंवैधानिक पद या नेतागिरी में पहुँच जाए

कई बार गुंडे चुनाव जीतकर, सत्ता से गठजोड़ करके या संवैधानिक पद पाकर वैधता का कवच पा लेते हैं।
यह उन्हें कुछ समय तक बचाता है। लेकिन:

  • संवैधानिक पद अस्थायी है: पाँच साल का कार्यकाल या जब तक सियासी समीकरण साथ दें।
  • परिवार हमेशा सुरक्षित नहीं रहता: प्रभाकरण के परिवार का हश्र, हिटलर का अंत, या भारत में कई बाहुबलियों का संघर्ष इसका उदाहरण है।
  • इतिहास की कसौटी: समय, जनता और न्याय अंततः यह साबित कर देते हैं कि गुंडागर्दी स्थायी नहीं हो सकती।

जनता की ताक़तअंतिम निर्णायक

और सबसे महत्वपूर्णजनता की इच्छा अगर जनता ठान ले, तो प्रशासन में मौजूद सबसे बड़े-बड़े संरक्षण-प्रदाता या संरक्षणप्राप्त गुंडे भी अछूते नहीं रह सकते। लोकतंत्र में वोट, जनआंदोलन, मीडिया की सतर्कता, नागरिक समाज की सक्रियता और न्यायपालिका की त्वरित कार्यवाहीइन सबका समन्वय किसी भी मजबूत संरक्षण-ढांचे को झटका दे सकता है।
यह संदेश उन जिम्मेदार नेताओं और नीतिनिर्माताओं के लिए भी है कि सार्वजनिक भरोसा और जनहित ही अंतिम अदालत है।


अंतिम निष्कर्ष

किसी भीबड़े गुंडेकी ताक़त उसकी व्यक्तिगत क्षमता से नहीं, बल्कि शासन के समर्थन और संवैधानिक पद की अस्थायी सुरक्षा से तय होती है।
लेकिन:

  • पद बदलता है,
  • जनता का मूड बदलता है,
  • राजनीति बदलती है,
  • और इतिहास कभी माफ़ नहीं करता।

प्रभाकरण, वीरप्पन, एस्कोबार, विकास दुबे या हिटलरहर कहानी यही कहती है कि राज्य की इच्छाशक्ति और समय का पहिया अंततः सबको कुचल देता है।

👉 असली स्थायित्व कानून, न्याय और समाज की आस्था में है किबड़े गुंडोंया अस्थायी पदों में।


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