गोडसे ने गांधी को क्यों मारा? – एक सामाजिक दृष्टिकोण
30 जनवरी 1948 को
महात्मा गांधी
की
हत्या
ने
पूरे
विश्व
को
हिला
दिया
था।
गांधीजी ने
पूरी
जिंदगी
सत्य,
अहिंसा
और
समानता
का
संदेश
दिया,
लेकिन
नाथूराम गोडसे
ने
उन्हें
गोलियों से
मारकर
न
केवल
भारत
की
आत्मा
पर
हमला
किया
बल्कि
लोकतंत्र और
मानवता
की
नींव
को
भी
हिला
दिया।
आम
तौर
पर
इस
घटना
के
पीछे
पाकिस्तान को
55 करोड़
रुपये
देने
और
मुस्लिमों के
प्रति
गांधीजी की
सहानुभूति जैसे
कारण
बताए
जाते
हैं।
लेकिन
यदि
गहराई
से
देखा
जाए
तो
इसके
पीछे
सामाजिक न्याय और जातीय बराबरी का
भी
बड़ा
मुद्दा
छिपा
था।
गांधी और सामाजिक न्याय
गांधीजी मानते
थे
कि
भारत
की
असली
आज़ादी
तभी
सार्थक
होगी
जब
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को
समाज
में
बराबरी
का
स्थान
मिलेगा।
- उन्होंने
अस्पृश्यता को “पाप” कहा।
- दलितों को उन्होंने
“हरिजन” (ईश्वर के लोग) नाम दिया।
- वे गाँव-गाँव जाकर दलितों और पिछड़ों को शिक्षित करने और समाज से भेदभाव मिटाने की अपील करते थे।
उनका
यह
दृष्टिकोण उस
समय
की
सवर्णवादी और जातिवादी मानसिकता को
सीधी
चुनौती
था।
गोडसे की मानसिकता
नाथूराम गोडसे
और
उसके
जैसे
लोग
कट्टरपंथी और
जातिवादी सोच
से
प्रभावित थे।
- वे मानते थे कि भारत केवल सवर्ण हिंदुओं के नेतृत्व में ही चलना चाहिए।
- उन्हें डर था कि गांधी और आंबेडकर जैसे नेताओं की वजह से संविधान में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों
को विशेष अधिकार मिलेंगे।
- गांधीजी का विचार “अंत्योदय” यानी समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुँचाना, उन्हें सत्ता के पारंपरिक ढाँचे के लिए ख़तरा लगता था।
हत्या के पीछे असली डर
गोडसे
को
लगता
था
कि
अगर
गांधी
जीवित
रहे
तो
–
- जातिवाद
पर गहरी चोट होगी।
- दलित,
पिछड़े और आदिवासी राजनीति और सत्ता में भागीदार बनेंगे।
- संविधान
में समानता और आरक्षण जैसी व्यवस्थाएँ मजबूत होंगी।
- सिर्फ
सवर्ण वर्चस्व वाला समाज ढह जाएगा।
यही
वह
गहरी
वजह
थी
जिसने
गोडसे
को
गांधी
के
ख़िलाफ़ कट्टर
बना
दिया।
निष्कर्ष
गांधी
की
हत्या
केवल
एक
व्यक्ति की
हत्या
नहीं
थी,
बल्कि
यह
समानता और सामाजिक न्याय के विचार पर
हमला
था।
आज
जब
हम
लोकतंत्र और
संविधान की
बात
करते
हैं,
तो
याद
रखना
चाहिए
कि
गांधी
और
आंबेडकर की
वजह
से
ही
भारत
में
दलितों,
पिछड़ों और
आदिवासियों को
सम्मान
और
अधिकार
मिले।
गोडसे ने गोली चलाई थी, लेकिन गांधी का सपना “सभी के लिए समान भारत” आज भी ज़िंदा है और हमें उसे आगे बढ़ाना है।
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